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मनुष्योगवन्द्रिका टीका स्त्र १३४ अन्तरवारनिरूपणम् नैकं समयं भवति, उत्कर्षेण तु द्वौ समयौ। नानाद्रव्याणि प्रतीत्य तु नास्ति अन्तरम् । अयं भावः-यादिसमयस्थितिकं विवक्षितं किंचिदेकमानुपूर्वीद्रव्यं तं परिणामं परित्यज्य परिणामान्तरेण समयमेकं स्थित्वा पुनःपूर्वोक्तेनैव परिणामेन यादि समयस्थितिकं जायते तदा जघन्यत एकं समयमन्तरं भवति। यदा तदेव द्रव्यं द्वौ समयौ परिणामान्तरेण स्थित्वा पुनस्तेनैव परिणामेन व्यादि समयस्थितिकं जायते तदा तत्रोत्कर्षमो द्वौ समयो अन्तरं भवति। यदि पुनः परिणामान्तरेण क्षेत्रादिभेदतः समयद्वयात् परतोऽपि तिष्ठेत् तदा तत्राऽप्यानु.
और ( उक्कोसेणं) उत्कृष्ट से (दो समया) दो समय का होता है। (नाणादवाई पडुरच) तथा नाना द्रव्यों की अपेक्षा लेकर इनमें (णस्थि अंतरं) अंतर नहीं है) तात्पर्य इसका इस प्रकार से है कि ध्यादि समय की स्थितिवाला कोई विवक्षित एक आनुपूर्वीद्रव्य आनु. पूर्वीप अपने परिणाम को छोडकर के किसी दूसरे परिणाम से एक समय तक परिणमित रहकर पुनः उसी परिणाम से ज्यादिसमय की स्थितिवाला बन जाता है तो ऐसी स्थिति में जघन्य से वहां अंतर एक समय का होता है। और जिस समय वही द्रव्य दो समय तक परि. णामान्तर से परिणमित बना रहकर फिर बाद में उसी परिणाम से ज्यादिसमय की स्थितिवाला बनता है तो ऐसी दशा में वहां उत्कृष्ट से दो समय का अन्तर माना जाता है। यदि परिणामान्तर से परिणमित बना हुआ वह द्रव्य क्षेत्रादि संबन्ध के भेद से दो समय से अधिक समय) मे समयनु भने (उकोसेणं) १५: धारे भत२ (दो समया) में समयनु डाय छे. (णाणादव्याइं पहच्च) मने द्र०यानी अपेक्षा पियार ४२वामा सावता (णत्थि अंतरं) भत२ (१२९४) नथी मा ४थननु તાત્પર્ય એ છે કે ત્રણ આદિ સમયની સ્થિતિવાળું દ્રવ્ય પિતાના અનુપૂર્વી રૂપ પરિણામને છોડીને કોઈ અન્ય પરિણામ રૂપે એક સમય સુધી પરિણ મિત રહીને ફરી ત્રણ આદિ સમયની સ્થિતિવાળા આનુપૂર્વી દ્રવ્ય રૂપે પરિમિત થઈ જતું હોય, તે એવી પરિસ્થિતિમાં ત્યાં જઘન્ય અત્તર (વિરહકાળ) એક સમય ગણાય છે. પણ ત્રણ આદિ સમયની સ્થિતિવાળું કે આનુપૂર્વી દ્રવ્ય પિતાના આનુપૂર્વી રૂપ પરિણામને છોડીને કેઈ અન્ય પરિણામ રૂપે બે સમય સુધી પરિણમિત રહીને ફરી ત્રણ આદિ સમયની સ્થિતિવાળા આનુપૂવી દ્રવ્ય રૂપે પરિમિત થઈ જતું હોય, તે એ પરિસ્થિતિમ ત્યાં ઉત્કૃષ્ટ અત્તર બે સમયનું ગણાય છે. જે અન્ય પરિણામ રૂપે પરિણુમિત થવું તે અનુપ દ્રવ્ય ક્ષેત્રાદિ સંબંધના ભેદથી બે સમય