________________
अनुयोगहारले सा पश्चानुपूर्वी-पश्चानुपूर्वी ऊर्धलोकः, तिर्यग्लोकः, अधोलोका। सैषा पश्चानुपूर्वी। अथ का सा अनानुपूर्बो ? अनानुपूर्ती-एतस्यामेव एकादिकायामेकोत्तरिकाया विगच्छगताया श्रेण्यामन्योन्याभ्यासो द्विरूपन्यूनः । सैषा अनानुपूर्वी ॥सू०१२०॥
टीका--'से किं तं' इत्यादि । व्याख्याकृतपाया । ऊर्षलोकादि लोकायविषये किंचिदुच्यते-औषनिधिको द्रव्यानुपूर्वीपस्तावे द्रव्यानुपूर्व्यधिकारा धर्मा____ उत्तर-(पच्छाणुपुव्वी) पश्चानुपूर्वी इसप्रकार से है-उडलोए तिरियलोए अहोलोए) उप्रलोक, तिर्यग्लोक, अधोलोक, (से स पच्छाणुपुठवी) यह पश्चानुपूर्ण है । (से कितं अणाणुपुब्बी) अनानुपूर्वी क्या है? ___ (अणाणुपुच्ची) अनानुपूर्वी इस प्रकार से हैं। (एयाएचेव एगइयाए एगु त्तरियाए तिगच्छगयाए सेढीए अण्णमण्णभासो दुरूवणो-सेतं अणाणुपुत्री) जिसमें पूर्वानुपूर्वी और पश्चानुपूर्वी ये दोनों नहीं हैं उसका नाम अनानुपूर्वी है इसमें विवक्षित अधोलोक आदि क्रमद्वय को उल्लंघनकरके परस्पर सं भवित भंगों से उन पदों की विरचना की जाती है । इस अनानु. पूर्वी में जो श्रेणी स्थापित की जाती है, उसमें सब से पहिले १ एक संख्या स्थापित की जाती है-बाद में एक २ की उत्तरोत्तर वृद्धि तीन संख्या तक होती चली जाती है। फिर इनमें परस्पर में गुणा किया जाता है। इस प्रकार अन्योन्याभ्यस्त राशि बन जाती है। इसमें से आदि अंत के
प्रश-(से किं तं पच्छाणुपुव्वी) पश्चानुपूर्वी ने ४४ छ ?
उत्तर-(पच्छाणुपुव्वी) ५श्वानुवा' मा प्रा२नी य छ-(उङ्कलोए, तिरियलोए, अहोलोए) Brqals, तियो भने भयो, मा प्रभारी र इमे उ' (से तं पच्छाणुपुवी?) तेनु नाम पश्चानुनी छे.
प्रश-(से किं तं अणाणुपुव्वी) मनानुभूती ये शु. १
उत्तर-(अणाणुपुव्वी) अनानुनी मानी डाय छे-(एयाए चेव एगाइयाए एगुत्तरियाए तिगच्छगयाए सेढीए अण्णमण्णन्भासो दुरूवूणो-से तं अणाणुपुव्वी) मा पूर्वानु५वी अने ५श्वानुवा थे -नेन समारय थे, એવા ક્રમપૂર્વક કથન કરવું તેનું નામ અનાનુપૂવી છે. તેમાં ઉપર્યુક્ત બને કમનું ઉલંઘન કરીને પરસ્પરની સાથે સંભવિત ભંગે (ભાંગાએ) વડે તે પની વિરચના કરવામાં આવે છે. આ અનાનુપૂર્વીમાં જે શ્રેણી સ્થાપિત કરવામાં આવે છે, ત્યાર બાદ ત્રણ સંખ્યા સુધી ઉત્તરોત્તર એક એક સંખ્યાની વૃદ્ધિ થતી રહે છે. ત્યાર બાદ તેમને પરસ્પરમાં ગુણાકાર કરાય છે. આ પ્રકારે અન્ય અભ્યાસ રાશિ બની જાય છે તેમાંથી અતિ અને