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अनुयोगद्वारसूत्र प्रदेशार्थता इन दोनों की अपेक्षा से (णेगमववहागणं) नैगम व्यवहारनय संमत-(अवत्तव्वगदव्याई) अवक्तव्यक द्रव्य (मन्वयोवोइं) सर्वस्तोक हैं। क्योंकि (दवट्ठयाए) अवक्तव्यक द्रव्यों में द्रव्यार्थता की अपेक्षा पहिलेसर्वस्तोकता प्रकट की गई है । (अणाणुपुब्बी दवाई दवट्टयाए अपए. सट्टगाए विसेमाहियाई) अनानुपूर्वी द्रव्य द्रव्यार्थता से और अप्रदेशार्थता से अबक्तव्यक द्रव्य की अपेक्षा कुछ अधिक हैं । (अवत्तव्वगदव्याई पएसट्टयाए विसेमाहियाई । ) अवक्तव्यक द्रव्य प्रदेशार्थता की अपेक्षाअनानुपूर्वी द्रव्यों से कुछ अधिक हैं। ( आणुपुची दवाई दबट्टयाए असंखेज्जगुणाई ) उभयार्थता को आश्रित करके द्रव्यार्थता की अपेक्षा से आनुपूर्वी द्रव्य असंख्यात गुणें हैं और (पएसट्टयाए) प्रदेशार्थता की अपेक्षा से भी (ताईचेव) वे ही आनुपूर्वीदव्य (असंखेज्जगुणाई) असं. ख्यात गुणे हैं (से तं अणुगमे) इस प्रकार यह अनुगम का स्वरूप है (से तं गमववहाराणं अणोवणिहिया खेत्ताणुपुव्वी) इस प्रकार यहां तक नैगम व्यवहारनय संमत अनौपनिधिकी क्षेत्रानुपूर्वी के स्वरूप का कथन किया। सूत्र पदों का यह अर्थ है। इसकी व्याख्या ९० वें सूत्र के શાતાની અપેક્ષાએ આનુપૂવી દ્રવ્ય અવકતવ્યક દ્રવ્ય કરતાં અસંખ્યાત ri . (दबटुपएस टुयाए) द्रव्यायता भने प्रदेशातानी अपेक्षा वियर ४२१॥म भाव तो (णेगमववहाराणं) नेगमय।२ नयस मत (अवचव्वगदव्वाई) भरत-य: द्रव्ये सोथी मां, २५ (दवट्याए) द्रव्याथતાની અપેક્ષાએ અવકતવ્યક દ્રવ્યોમાં પહેલાં સર્વસ્તકતા (સૌથી અહ૫ प्रभार) मताभ भाव . (अणाणुपुव्वीदव्याई दवदयाए अपएमट्याए विसेमाहियाई) द्रव्यात भने प्रदेशातानी अपेक्षा मानानुनी व्यो अ१४तय४ ये ४२di विशेषाधि छे. (आणुपुवीदवाई व्वदयाए असं. खेजगुणाई) या तानी अपेक्षा पियार ४२वामां आवे तो मानुषी योगस यात छे. (पएसयाए) प्रशानी अपेक्षा पियार १२पामा भावे तो (ताई चेव) ते भानुषी द्रव्यो (असंखेज्जगुणाई) असण्यात आ ले. (से तं अणुगमे) मा ५४२अनुगमन ११३५ . (से तणेगमबबहाराणं अणोवणिहिया खेत्ताणुपुव्वी) मारीत मी सुधीनां सूत्रोमा નગમવ્યવહાર નયસંમત અનૌપનિધિક ક્ષેત્રાનપૂર્વાના સ્વરૂપનું કથન કરવામાં આવ્યું છે. સૂત્રપને આ અર્થ છે તેની વ્યાખ્યા ૯૦માં સૂત્ર પ્રમાણે સમજવી,