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योगवन्धिका टीका सूत्र १०६ भनोपदर्शनतानिरूपणम् अपकन्यकम् । त्रिप्रदेशावगाढा आनुपूर्व्यः, एकपदेशावगाढा अनानुपूर्यः, द्विपदेशावगाहा अवक्तव्यकानि ॥मू०१.६॥ । टीका-सम्पति भङ्गोपदर्शनतां निरूपयितुमाह-' से कि तं' इत्यादि । टीका मुगमा सू०१०६॥ भंगोपदर्शनता इस प्रकार से है-(तिप्पएसोगाढे ओणुपुव्वी एगपएसो. गाढे अणाणुपुव्वी दुप्पएसोगाढे अवत्तव्वए ) आकाश के तीन प्रदेशों में रहा हुआ व्यणुक आदि स्कंध आनुपूर्वी इस शब्दका वाच्यार्थ है । एकप्रदेश में स्थित परमाणु संघात, और स्कंध संघात क्षेत्र की अपेक्षा अनानुपूर्वी है तथा आकाश के दो प्रदेशों में स्थित विप्रदेशिक आदि स्कंध क्षेत्र की अपेक्षा अवक्तव्यक है । (तिप्पएसोगाढा आणुपुचीओ, एगपएसोगाढा अणाणुपुव्वीओ, दुप्पएसोगाढा अवत्तव्वयाई) आकाश के तीन प्रदेशों में रहे हुए बहुत से व्यणुक आदि स्कंध आनुपूर्वियां इस बहुवचनान्त शब्द के वाच्यार्थ हैं। आकाशके एक प्रदेश में रहे हुए अ. नेक परमाणु संघात आदि द्रव्य, अनानुपूर्षियां इस शब्दके वाच्यार्थ हैं। तथा विप्रदेश में स्थित अनेक द्विप्रदेशिक आदि स्कंध अवक्तव्यक इस बहुवचनान्त शब्द के याच्याध है । इसकी व्याख्या के लिये पीछे ७९ वे सूत्र की व्याख्या देखनी चाहिये ॥ सू० १०६ ॥
(तिप्पएसोगाढे आणुपुब्बी एगपएसोगाढे अणाणुपुवी दुप्पएसोगाढे अवत्तध्वए) माशना १ प्रदेशमा २३॥ या (त्रय म ) मा
આનુપૂવી” ” આ શબ્દો વાર્થ રૂપ છે. એક પ્રદેશમાં સ્થિત પરમાણુ સંધાત, અને સકંધ સંઘત ક્ષેત્રની અપેક્ષાએ અનાનુપવી છે
તથા આકાશના બે પ્રદેશમાં રહેલ દ્વિદેશિક આદિ ધ ક્ષેત્રની अपेक्षा अ१४तव्य छे. (तिःपएसोगादा आणुपुवीओ एगपएसोगाढा अणाणुपुवीओ, दुप्पएसोगाढा अवत्तव्वयाई) घgi or नि 4.6 २४ “આનુપૂવી ઓ” આ બહુવચનાન્ત શબ્દના વાચ્યાર્થ રૂપ છે. આકાશના એક પ્રદેશમાં રહેલા અનેક પરમાણુ સંઘાત આદિ દ્રવ્યો “અનાનુપૂર્વીએ ” આ પદના વસ્થાર્થ રૂપ છે. બે પ્રદેશમાં સ્થિત અનેક દ્વિદેશિક આદિ રક “ અવક્તવ્યો” આ બહુવચનાન્ત પદના વાગ્યાથું રૂપ છે. આ સત્રની વ્યાખ્યા સમજવા માટે ૭૯ માં સૂત્રની વ્યાખ્યા વાંચી લેવી. ૧૦૬ છે.