________________
का टीका सूत्र ९५ समवतारस्वरूपनिरूपणम्
૧૦૨
अवसन्नगद०जेहिं समोयति । एवं दोन्नि वि सट्टाणे सटुाणे समोयरंति । से तं समोयारे ॥ सू० ९५ ॥
छाया - अथ कः स संग्रहस्य समवतारः १ संग्रहस्य समवतारः - संग्रहस्य भानुपूर्वीद्रव्याणि कुत्र समवतरन्ति ? किमानुपूर्वीद्रव्येषु समक्तरन्ति ? अनानुपूर्वीद्रव्येषु समवतरन्ति ? अवक्तव्यकद्रव्येषु समवतरन्ति ? संग्रहस्य आनुपूर्वीद्रव्याणि अब सूत्रकार संग्रहनय मान्य समवतार का स्वरूप कहते है" से किं तं " इत्यादि ।
शब्दार्थ - ( से किं तं संगहम समोपारे) हे भदन्त संग्रहनय मान्य समवतार का क्या स्वरूप है ?
उत्तर- (संगहरूस समोवारे ) संग्रहनय मान्य समवतार का स्वरूप इस प्रकार से है समवतार का अर्थ समावेश- मिलना है। अर्थात् आनुपूर्वी आदि जो द्रव्य है उनका अन्तर्भाव मिलना स्वस्थान में होता है या परस्थान में होता है ? इस प्रकार चिन्तन प्रकार का जो उत्तर है वह समावेश है । यह विचार प्रकार इस प्रकार से होता है कि संग्रह नय संमत आनुपूर्वी द्रव्य कहाँपर समाविष्ट होते हैं ? (किं आणुपुव्वेहिं समोपरंति ? अगाणुपुब्वेहिं समोगरंति, अवन्तन्यगदव्वेहिं समोयरंति ? ) क्या आनुपूर्वी द्रव्यों में समाविष्ट होते हैं? या अनानुपूर्वीद्रव्यों में समाविष्ट होते हैं या अवक्तव्यक द्रव्यों में समाविष्ट होते हैं ।
હવે સૂત્રકાર સ ંગ્રહનયમત સમવતારના સ્વરૂપનું નિરૂપણ કરે " से कि त " हत्याहि
शब्दार्थ - ( से कि त संगहरव समोमारे १) हे भगवन् ! सभनय સંમત સમજતારનું સ્વરૂપ કેવુ છે?
6.
उत्त- "सगइश्स समोयारे " સંગ્રહનયમાન્ય સમવતારનું સ્વરૂપ આ પ્રકારનું છે-(સમવતાર એટલે સમાવેશ અથવા મિલન) એટલે કે માનુપૂર્વી આદિ જે દ્રર્યેા છે તેમને અન્તર્ભાવ (સમાવેશ) સ્વસ્થાનમાં થાય છે કે પરસ્થાનમાં થાય છે?” આ પ્રકારની વિચારધારાના જે ઉત્તર છે, તેનું નામ સમવતાર છે મ. વિચારધારા આ પ્રમાણે ચાલે છે–સ‘ગ્રહનયસ’મત भानुपूर्वी द्रव्यो। समावेश थाय छे ? ( कि आणुपुव्वी दव्बेहिं समोयरंति १ अाणुपु०बी०बेहिं समोयरंति ? अवत्तच्वगदव्बेहिं समोयरंति ? ) शु मानुपूर्वी' કબ્યામાં સમાવિષ્ટ થઈ જાય છે–મળી જાય છે ? કે અનાનુપૂર્વી' દ્રયૈામાં સમાવિષ્ટ થઈ જાય છે ? કે અવકતવ્યક દ્રન્ચેામાં સમાવિષ્ટ થઇ જાય છે,
म० ५२