________________ सम्यक्त्व सप्ततिका की टीका का उल्लेख सूरिपुरंदर हरिभद्रसूरिजी रचित 'सम्यक्त्व सप्ततिका' ग्रंथ की टीका रुद्रपल्लीय गच्छ के संघतिलकसूरिजी ने सं. 1442 में रची थी। उस ग्रंथ की 26वीं गाथा की टीका में प्रसंगोपात जिनेश्वरसूरिजी की कथा भी दी है। उसमें भी जिनेश्वरसूरिजी का पाटण जाना एवं सुविहित मुनियों के विहार की अनुमति की बात लिखी है, परंतु राजसभा में चैत्यवासिओं से वाद और 'खरतर' बिरुद की प्राप्ति का कोई निर्देश नहीं किया है। संदर्भ ग्रंथ इस प्रकार है“जिणिसरसूरी तह बुद्धिसायरो गणहरो दुवे कइया। सिरिवद्धमाणसूरिहिं एवमेए समाइट्ठा।।43।। वच्छा! गच्छह अणहिल्लपट्टणे संपयं जओ तत्थ। सुविहियजइप्पवेसं, चेइयमुणिणो निवारंति।।44।। सत्तीए बुद्धीए, सुविहियसाहूण तत्थ य पवेसो। कायव्वो तुम्ह समो, अन्नो नहु अत्थि कोऽवि विऊ।।45।। सीसे धरिऊण गुरूणमेयमाणं कमेण ते पत्ता। गुज्जरधरावयंसं, अणहिल्लभिहाणयं नयरं।।46।। गीयत्थमुणिसमेया, भमिया पइमंदिरं वसहिहेउं। सा तत्थ नेव पत्ता, गुरुण तो सुमरियं वयणं / / 47 / / तत्थ य दुल्लहराओ, राया रायव्व सव्वकलकलिओ। तस्स पुरोहियसारो, सोमेसरनामओ आसि।।48।। तस्स घरे ते पत्ता, सोऽविहु तणयाण वेयअज्झयणं। कारेमाणो दिट्ठो, सिट्ठो सूरिप्पहाणेहिं।।49।। सुणु वक्खाणं वेयस्स, एरिसं सारणीइ परिसद्ध। सोऽवि सुणतो उप्फुल्ललोयणो विम्हिओ जाओ।।50।। किं बम्हा रूवजुयं, काऊणं अत्तणो इह उइन्नो। इय चिंतंतो विप्पो, पयपउमं वंदइ तेसिं।।51।। सिवसासणस्स जिण-सासणस्स सारक्खरं गहेऊणं। ( इतिहास के आइने में - नवाङ्गी टीकाकार अभयदेवसूरिजी का गच्छ /089