________________ परिशिष्ट-2 प्रभावक चरित्र का उल्लेख प्रभाचंद्रसूरिजी द्वारा रचित 'प्रभावक चरित्र' (सं. 1334) एक ऐतिहासिक ग्रंथ है, जिसे सभी गच्छ प्रामाणिक मानते हैं।उसमें दिये गये ‘अभयदेवसूरि प्रबन्ध' में जिनेश्वरसूरिजी का भी वर्णन दिया है। उसमें उनका पाटण जाना तथा कुशलता पूर्वक वसतिवास वाले साधुओं के विहार की अनुमति प्राप्त करने का विस्तृत वर्णन भी दिया है, परंतु उसमें न तो 'खरतर' बिरुद प्राप्ति का उल्लेख है और न ही राजसभा में किसी वाद के होने का निर्देश है। उसमें केवल सुविहित साधुओं के विहार की अनुमति प्राप्ति का ही उल्लेख है। पूरा संदर्भ ग्रंथ इस प्रकार है : ज्ञात्वौचित्यं च सूरित्वे, स्थापितौ गुरुभिश्च तौ। शुद्धवासो हि सौरभ्य, वासंसमनुगच्छति।।42।। जिनेश्वरस्ततःसूरिरपरोबुद्धिसागरः। नामभ्यां विश्रुतौ पूज्यै विहारेऽनुमतौ तदा।।43।। ददे शिक्षेति तैः, श्रीमत्पत्तने चैत्यसूरिभिः। विघ्नं सुविहितानां, स्यात्तत्रावस्थानवारणात्।।44।। युवाभ्यामपनेतव्यं, शक्त्या बुद्ध्या च तत्किल। यदिदानींतने काले, नास्ति प्राज्ञो भवत्समः।।45।। अनुशास्तिं प्रतीच्छाव, इत्युक्त्वा गूर्जरावनौ। विहरन्तौ शनैः, श्रीमत्पत्तनं प्रापतुर्मुदा।।46।। सद्गीतार्थपरीवारौ, तत्र भ्रान्तौ गृहे गृहे। विशुद्धोपाश्रयालाभावाचं, सस्मरतुर्गुरोः।।47।। श्रीमान् दुर्लभराजाख्यस्तत्र चासीद्विशांपतिः। गीष्पतेरप्युपाध्यायो, नीतिविक्रमशिक्षणे(णात्)।।48।। श्री सोमेश्वरदेवाख्यस्तत्र, चासीत्पुरोहितः। तद्गहे जग्मतुर्युग्मरुपौ, सूर्यसुताविव।।49।। तद्वारे चक्रतुर्वेदोच्चारं, संकेतसंयुतौ। / इतिहास के आइने में - नवाङ्गी टीकाकार अभयदेवसूरिजी का गच्छ /083 )