________________ 102 श्रीजेसलमेरुदुर्गस्थ [क्र. २५४क्रमाङ्क 254 वासुपूज्यस्वामिचरित्र पद्य पत्र 359 / भा. सं.। क. वर्धमानसूरि / नं. 5494 / र. सं. 1299 / ले. सं. 1327 / संह्. श्रेष्ठ / द. श्रेष्ठ / लं. प. 21 / 42 अन्त __ नृपविक्रम संवत् 1327 वर्षे अश्विनवदि 10 बुधे श्रीमदर्ज(र्जु)नदेवकल्याणविजयराज्ये श्रीवासुपूज्यचरितं लिखितं // क्रमाङ्क 255 शांतिनाथचरित्र गाथाबद्ध पत्र 397 / भा. प्रा. / क. देवचन्द्रसूरि। अं. 12100 / र.सं. 1160 / ले. सं. अनु. 13 मी शताब्दी। संह. श्रेष्ठ / द. श्रेष्ठ / लं. प. 3042 / / पत्र 377, 379 ना टूकडा नथी / क्रमाङ्क 256 मुनिसुव्रतस्वामिचरित्र पद्य पर्वत्रयात्मक पत्र 157 / भा. सं. / क. पद्मप्रभसूरि / ग्रं. 5568 / र.सं. 1294 / ले. सं. 1304 / संह, श्रेष्ठ। द. श्रेष्ठ / लं. प. 3142. / प्रति शुद्ध छे / ॥इत्याचार्यश्रीपद्मप्रभविरचिते श्रीमुनिसुव्रतस्वामिचरिते भवत्रयनिबद्ध पर्वत्रितयप्रमाणे स्वामिनिर्वाणकल्याणकप्रपंचः पंचदशः प्रस्तावः ॥छ॥ समर्थितं चेदं तृतीयं पर्व ॥छ॥ शुभं भवतु ॥छ।। पूर्व चंद्रकुले बभूव विपुले श्रीवर्द्धमानप्रभुः सूरिमंगलभाजनं सुमनसां सेव्यः सुवृत्तास्पदम् / शिष्यस्तस्य जिनेश्वरः समजनि स्याद्वादिनामग्रणी बैधुस्तस्य च बुद्धिसागर इति विद्यपारंगमः // 1 // सुरिश्रीजिनचंद्रोऽभयदेवगुरुर्नवांगवृत्तिकरः / श्रीजिनभद्रमुनीन्द्रो जिनेश्वरविभोस्त्रयः शिष्याः // 2 // चके श्रीजिनचंद्रसरिगुरुभिधुर्यः प्रसन्नाभिधस्तेन ग्रन्थचतुष्टयीस्फुटमतिः श्रीदेवभद्रप्रभुः / देवानन्दमुनीश्वरोऽभवदतश्चारित्रिणामग्रणीः संसारांबुधिपारगामिजनताकामेषु कामं सखा // 3 // यन्मुखावासवास्तव्या व्यवस्यति सरस्वती। गंतु नान्यत्र स न्याय्यः श्रीमान् देवप्रभप्रभुः // 4 // मुकुरतुलामंकुरयति वस्तुप्रतिबिंबविशदमतिवृत्तम् / श्रीविबुधप्रभचित्तं न विधत्ते वैपरीत्यं तु // 5 // तत्पदपद्मभ्रमरश्चक्रे पद्मप्रभश्चरितमेतत् / विक्रमतोऽतिकांते वेदग्रहरविमिते समये 1294 // 6 // क्षितिभृत्कृतप्रतिष्ठे गूर्जरवंशेऽजनिष्ट पाजाकः / लेमे स यशःपालं नयपालनलालसं तनयम् // 7 // गुणधवलितदिग्वलयं तदनु यशोधवलमंगजमलब्ध। येन किल राजनगरे प्रथितं श्रीपावचैत्यं च // 8 // अजनि यशःपालसुतो विश्वाबालस्फरद्यशःशाखी। श्रीपार्श्वजिनपदांबुजयुगहंसः पार्श्वदेवोऽथ // 9 // अजनिषत तस्य पुत्रास्त्रयश्चरित्रैः सतां पवित्र हृदः। प्रथमोऽत्र रत्नसिंहस्ततो जगत्सिहसामन्तौ // 10 // लघुनाऽप्यलधुसहोदरभक्तिभृता येन राजनगरेऽत्र। अप्रतिबिंबमकार्यत मुनिसुव्रततीर्थकृबिंबम् // 11 // नन्दीश्वरस्य नयनानन्दी जगताममंदविनयेन / सुजनप्रियेण विजितेन्द्रियेण पाचप्रमोश्चैत्ये // 12 // स्फटिकवैयबिंबद्युत्या नित्यं विनिर्ममे येन / गंगायमुनावेणीसंगम इव दलितकलुषभरः // 13 // जीर्णोद्धारधुरीणः सप्तक्षेत्रोपयुज्यमानधनः। अभवदिह हेतु कर्ता सामन्त[:] स्वपरशुभवृद्धयै // 14 // यावत तपति दिनपतिविश्वं धवलयति वा सुधारश्मिः / अपनुदतु तमस्तावचरितमिदं शुभदशामनिशम् / / 15 / / प्रथमादर्शालेखनसाहाय्ये धर्मकीर्तिगणिनाऽत्र / विहितेऽपूर्यत पंचकचतुष्टयांक चरित्रमदः // 16 // छ।। ग्रंथाग्रं 5568 ॥छ।। * इससे इतना पता चलता है कि 'मुनिसुव्रत चरित्र' के कर्ता पद्मप्रभसूरिजी चान्द्रकुल में हुए अभयदेवसूरिजी तथा जिनचंद्रसूरिजी के वंशज थे। - संपादक / इतिहास के आइने में - नवाङ्गी टीकाकार अभयदेवसूरिजी का गच्छ /071 )