________________ 'खरतर' शब्द का अर्थ एवं बिरुद के रूप में विरोधाभास I ‘खरतर' यह शब्द वाद में जीते हुए जिनेश्वरसूरिजी के पक्ष की सच्चाई की प्रशंसा के लिए प्रयुक्त किया गया था, ऐसा मानना ही उचित नहीं लगता है क्योंकि1. संस्कृत में ‘खरतर' शब्द का अर्थ-अति कठोर, तेज, तीखा, निष्ठर, कर्कश, गरम आदि होता है एवं व्यवहार में भी उसका प्रयोग ‘विशेष कठोरता' के लिये होता है। वर्तमान में भी ‘इनका स्वभाव खडतल है' और 'यह संयम में खडतल है' इस प्रकार के प्रयोग पाये जाते हैं। परंतु खरतर शब्द का कहीं भी सत्य-निष्ठता के अर्थ में प्रयोग नहीं पाया जाता 2. इस विसंवाद को टालने के लिये अगर कहा जाय कि 'खरे हो' ऐसे अर्थ वाला ‘खरतर' शब्द 'खरा' ऐसे देशी शब्द से बना है जिसका प्रयोग किया गया था। तो वह भी शक्य नहीं है क्योंकि खरा यह देशी शब्द है और तर यानि तरप यह संस्कृत प्रत्यय है, तो दोनों का जोड़ान कैसे होगा? तथा दुर्लभ राजा जैसा विद्वान राजा इस प्रकार का गलत प्रयोग कैसे कर सकता है ? यह भी विचारणीय है। 3. तथा व्यवहार में 'खरा' का प्रतिपक्षी शब्द ‘खोटा' होता है। अगर ‘खरे हो' इस अर्थ में जीतने वाले पक्ष को खरतर बिरुद दिया गया तो, हारनेवाले पक्ष के लिये 'खोटे हो' इस अर्थ वाले शब्द का प्रयोग किया *1 ‘समस्या समाधान और संतुष्टि' पृ. 192 पर मनितप्रभसागरजी म.सा. ने, 'राजा ने खड़े होकर क्या कहा?' इस प्रश्न 22 के जवाब में लिखा कि - आचार्यवर ! आप खरे हो !' इसीसे खरतरगच्छ की परम्परा का सूत्रपात हुआ।' विचारणीय प्रश्न - इसी पृ. 192 के प्रश्न 25 के जवाब में "जिनदत्तसूरिजी के समय विधिमार्ग ‘खरतरगच्छ' के नाम से प्रसिद्ध हुआ।" ऐसा लिखा है तो प्रश्न होता है कि जिनेश्वरसूरिजी को सं. 1080 में 'खरे हो ऐसा संबोधन किया गया हो और 125 साल के लंबे समय के बाद सं. 1204 में जिनदत्तसूरिजी के समय में गच्छ का नाम ‘खरतरगच्छ' हुआ यह कैसे संभव है? *2. अभी अभी खरतरगच्छ की ओर से छपी ‘खरी-खोटी' इस पुस्तिका का नाम भी इस बात की पुष्टि करता है। / इतिहास के आइने में - नवाङ्गी टीकाकार अभयदेवसूरिजी का गच्छ/039 )