________________ जिनदत्तसूरि के पहिले खरतर शब्द इनके किन्हीं आचार्यों ने नहीं माना था। विक्रम की सोलहवीं शताब्दी का शिलालेख हम पूर्व लिख आये हैं। वहाँ तक तो खरतर गच्छ मंडन जिनदत्त सूरि को ही लिखा मिलता है इतना ही क्यों पर उसी खण्ड के लेखांक 2385 में तो जिनदत्तसूरिजी को खरतरगच्छावतंस भी लिखा है, अतः खरतरमत के आदिपुरुष जिनदत्तसूरिजी ही थे। ___* श्रीमान् अगरचंदजी नाहटा बीकानेर वालों द्वारा मालूम हुआ कि वि. सं. 1147 वाली मूर्ति पर का लेख दब गया है। अहा-क्या बात है-आठ सौ वर्षों का लेख लेते समय तक तो स्पष्ट बचता या बाद केवल 3-4 वर्षों में ही दब गया, यह आश्चर्य की बात है। नाहटाजी ने भीनासर में भी वि. सं. 1181 की मूर्ति पर शिलालेख में 'खरतरगच्छ' का नाम बतलाया है। इसी का शोध के लिये एक आदमी भेजा गया, पर वह लेख स्पष्ट नहीं बचता है, केवल अनुमान से ही 1181 नाम लिया है। (ज्ञानसुन्दरजी म.सा.-खरतरमतोत्पत्ति भा-1, पृ. 21-22-23) 3. इसी तरह जैतारण आदि के लेख के विषय में भी यही बात है। "खरतरगच्छ का उद्भव' पुस्तिका में प्रेस संबंधित भरपूर अशुद्धियाँ हैं, उसमें संवत भी ठीक नहीं छपे हैं। जैसे कि सं. 1188 में देवभद्रसूरिजी रचित 'पार्श्वनाथ चरित्र' ऐसा लिखा है, परन्तु वास्तव में सं. 1168 में यह ग्रंथ रचा गया था। जैतारण के जिन लेखों की बात वहाँ पर की गयी है, वे लेख इस प्रकार हैं1. 'सं. 1171 माघ शुक्ल 5 गुरौ सं. हेमराजभार्यहेमादे पु. सा. रूपचंद रामचन्द्र श्री पार्श्वनाथ बिंब करापितं अ. खरतरगच्छे सुविहित गणाधीश श्री जिनदत्तसूरिभिः।' 2. 'सं. 1174 वैशाख शुक्ला 3 सं. म.... भार्यहेमादें पु. ... चन्द्रप्रभ बिम्ब.... प्र. खरतरगच्छे सुविहित गणाधीश्वर श्री जिनदत्तसूरिभिः' 3. 'सं. 1181 माघ शुक्ल 5 गुरौ प्राग्वट ज्ञातिय सं. दीपचन्द्र भार्य दीपादें पु. अबीरचंद्र अमीरचंद्र श्री शान्तिनाथ बिंब करापितं प्र. खरतरगच्छे सुविहित गणाधीश्वर श्री जिनदत्तसूरिभिः' 4. 'सं. 1167 जेठ वदी 5 गुरौ स. रेनुलाल भार्य रत्नादें पु. सा. कुनणमल श्री चन्द्रप्रभ बिंब करापित प्र. सुविहित खरतर गच्छे गणाधीश्वर श्री इतिहास के आइने में - नवाङ्गी टीकाकार अभयदेवसूरिजी का गच्छ /027