________________ पार्श्वनाथ मंदिर में प्राप्त शिलालेख जो सं. 1147 का है, उसमें स्पष्ट लिखा है 'खरतरगच्छ जिनशेखरसूरिभिः।' सं. 1188 में रचित देवभद्रसूरिकृत पार्श्वनाथ चरित्र की प्रशस्ति में 1170 में लिखित पट्टावली में खरतर विरुद' मिलने का स्पष्ट उल्लेख है। जैतारण राजस्थान के धर्मनाथ स्वामी के मंदिर में सं. 1171 माघ सुदी पंचमी का सं. 1169. सं. 1174 के अभिलेखों में स्पष्ट लिखा है- 'खरतरगच्छे सुविहिता गणाधीश्वर जिनदत्तसूरि। ___भीनासर (बीकानेर) के पार्श्वनाथ के मंदिर में पाषाण प्रतिमा पर सं. 1181 का लेख अंकित है, उसमें भी 'खरतरगणाधीश्वर श्री जिनदत्तसूरिभिः' लिखा है। (खरतरगच्छ का उद्भव पृ. 31-32) लेख की समीक्षा 1. जिनपीयूषसागरसूरिजी ने महावीर चरियं की जो बात लिखी है उसका स्पष्टीकरण आगे पृ. 22-23 पर किया जा चुका है। 2. जैसलमेर दुर्ग के सं. 1147 वाले लेख तथा भीनासर (बीकानेर) के सं. 1181 वाले लेख का स्पष्टीकरण ज्ञानसुंदरजी म.सा. के शब्दों में इस प्रकार खरतर शब्द को प्राचीन साबित करने वाला एक प्रमाण खरतरों को ऐसा उपलब्ध हआ है कि जिस पर वे लोग विश्वासकर कहते हैं कि बाबू पूर्णचन्द्रजी नाहर के संग्रह किये हुए शिलालेख खण्ड तीसरे में वि. सं. 1147 का एक शिलालेख है। 'सं. 1147 वर्षे श्रीऋषभ बिंबं श्रीखरतर गच्छे श्री जिनशेखर सूरिभिः कारापितं॥' -बा. पू. सं. खं. तीसरा लेखांक 2124 पूर्वोक्त शिलालेख जैसलमेर के किल्ले के अन्दर स्थित चिन्तामणि पार्श्वनाथ के मंदिर में है। जो विनपबासन भूमि पर बीस विहरमान तीर्थंकरों की मूर्तियाँ स्थापित है, उनमें एक मूर्ति में यह लेख बताया जाता है। परन्तु जब फलोदी के वैद्य मुहता पांचूलालजी के संघ में मुझे जैसलमेर जाने का सौभाग्य मिला तो, मैं अपने दिल की शङ्का निवारणार्थ प्राचीन लेख संग्रह खण्ड तीसरा जिसमें निर्दिष्ट लेख इतिहास के आइने में - नवाङ्गी टीकाकार अभयदेवसूरिजी का गच्छ /025 )