________________ प्रसिद्ध है संवेगरंगशाला में परिणामद्वार में आयुष्यपरिज्ञान के जो 11 द्वारों (1) देवता, (2) शकुन, (3) उपश्रुति, (4) छाया, (5) नाड़ी, (6) निमित्त, 7) ज्योतिष, 8) स्वप्न, 9) अरिष्ट, 10) यन्त्र-प्रयोग और, 11) विद्याद्वार दर्शाये हैं। इसी तरह श्रीहेमचंद्राचार्य ने अपने संस्कृत योगशास्त्र में (पाँचवें प्रकाश में) काल-ज्ञान का विचार विस्तार से दर्शाया है। तुलनात्मक दृष्टि से अभ्यास करने योग्य हैं। ___ पाटण और जेसलमेर आदि के जैन ग्रंथ भण्डारों में आराधना-विषयक छोटेमोटे अनेक ग्रंथ हैं, सूचीपत्र में दर्शाये हैं। इन सबका प्राचीन आधार यह संवेगरंगशाला आराधनाशास्त्र मालूम होता है। वर्तमान में, अन्तिम आराधना कराने के लिए सुनाया जाता आराधना प्रकीर्णक, चउसरणपयन्ना और उ. विनयविजयजी म. का पुण्य प्रकाश स्तवन इत्यादि इस संवेगरंगशाला ग्रंथ का 'ममत्व-व्युच्छेद' 'समाधि-लाभ' विभाग का संक्षेप है- ऐसा अवलोकन से प्रतीत होगा। दस हजार से अधिक 53 प्राकृत गाथाओं का सार इस संक्षिप्त लेख में दिग्दर्शन रूप सूचित किया है। परम उपकारक इस ग्रंथ का पठन-पाठन, व्याख्यान, श्रवण, अनुवाद आदि से प्रसारण करना अत्यन्त आवश्यक है, परमहितकारक स्वपरोपकारक है। आशा है, चतुर्विध श्रीसंघ इस आराधना शास्त्र के प्रचार में सब प्रकार से प्रयत्न करके महसेन राजा की तरह आत्महित के साथ परोपकार साधेंगे। मुमुक्षु जन आराधना रसायन से उनसे अजरामर बने-यही शुभेच्छा / संवत् 2027 पोषवदि 3 गुरु (मकर संक्रान्ति) बड़ी बाड़ी, रावपुरा, बडौदा (गुज.) लालचन्द्र भगवान् गांधी (नियुक्त - ‘जैनपण्डित' बड़ौदा राज्य) * शायद लालचंद्र जी को ध्यान नहीं था कि आराधना प्रकीर्णक एवं चउसरणपयन्ना पूर्वाचार्यों की कृतियाँ है अन्यथा उन्हें संवेगरंगशाला ग्रंथ के विभाग के संक्षेप के रूप में नहीं बताते। -संपादक इतिहास के आइने में - नवाङ्गी टीकाकार अभयदेवसूरिजी का गच्छ /172 )