________________ *. 62 अलंकार है / हे पुत्र !! * तुम दीपचन्द्र राजा के वचनों को हृदय में धारण करो।" . : : :: . . श्रीचन्द्र ने कहा कि, "वणिक के घर पर स्त्री को सभी कार्य करने पड़ते हैं जिससे वणिक के घर में वणिक कन्या ही योग्य होती है / दैवयोग से रांजपुत्री वणिक के घर पाये तो यह कमल के पत्तों को कूटने के समान होगा। कहाँ वरिणकं गृह की कार्य लीला, कहां राज महल की आनन्द लीला? आपकी बातें मेरे चित्त में बैठती नहीं हैं / अभी तो आप सब एक हो कर कह रहे हैं। पर तु विवाह के पश्चात् पत्थर के नीचे अंगुली के समान सहन तो उसे ही करना पडेगा, वह किस प्रकार सहन करेगी ? आप सब मिलकर विचार करें कि वणिक कुल में कन्या किस प्रकार सुखी रह सकेगी ? राज कन्या वणिक कुल में न जाय ऐसा विचार कर पहले भी एक राजकन्या के साथ मैंने विवाह नहीं क्तिया / फिर दुसरी को किस प्रकार स्वीकार करू ? यदि राज कन्या मेरे साथ विवाह करने योग्य होती तो विधाता मेरा जन्म गजकुल में क्यों नहीं करते ? विधाता ने मेरा जन्म वणिक कुल में किसलिए किया 1" यह वचन सुनकर सब चुप हो गये। . .. - श्रीचन्द्र के गुणों द्वारा मोहित पद्मिनी पर्दे के पीछे बैठी आंसू बहाने लगी / यह वात चंन्द्रवती रानी को चतुरा ने कही ! चन्द्रवती ने पद्मिनी को गोद में बिठाया / प्रदीपवती ने श्रीचन्द्र से कहा 'श्रीचन्द्र / तुम कला आदि में प्रवीण हो / अपूर्व लावण्य, क़ाति प्रादि से देदीप्यमान हो, तुम्हारे अंग में क्षत्रिय का तेज़ स्फुरायमान है. / गुणों आदि से तुम P.P. Ac. Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust