________________ 61 9. सकता हूँ क्योंकि मैं क्रीड़ा का आदेश लेकर इस देश में आया हूँ / माता पिता को पूछे बिना मैं विवाह कर लू तो यह मेरी अशिष्टता मानी जायगी। वहां जाकर मैं उन्हें क्या कहूँगा?" चन्द्रवती राणी ने कहा कि "श्रीचन्द्र जो कुछ कह रहा है यह सर्वथा उनित है परन्तु पहले भी राजा, मन्त्री, श्रेष्ठी पुत्र प्रादि अनेक लोगों ने अपने भाग्य की परीक्षा के लिए पृथ्वी पर स्थान 2 पर भ्रमण किया था और उन्होंने पिता के आदेश बिना क्या राज्यादि को ग्रहण नहीं किया ? उसी प्रकार उन्होंने क्या पाणिग्रहण आदि भी नहीं किया ? वस्तु की प्राप्ति में, भाग्य ही योग्य सम्पदा होती है। पिता अपनी स्थिति में रहता है और पुत्र राज्य लक्ष्मी भोगता है। पूर्व के पुण्य और पाप कर्म सबके अलग होते हैं इसलिए हे श्रीचन्द्र ! प . शास्त्र के जानकार हैं अतः विवाह निषेध न करिये / " - श्रचन्द्र ने विचार किया कि माता तुल्य इस रानी को मैं क्या उत्तर दू? इतने में वामांग ने साहस से कहा कि, 'लग्न करने में आपको . क्या कठिनाई है ? हमें तो कोई कहता ही नहीं, हम तो तुरन्त ही मान लेवें। कौन गृहस्थ, लग्न, धन, राज्य मादि को प्राप्त करने की इच्छा नहीं करता?" . . वरदत्त श्रेष्ठी ने कहा कि, "संसार इसी कारण से तो विचित्र कहलाता है / जो लघुकर्मी होता है, उसमें बहुत धैर्य होता है। अतः प्रति आग्रह से ही श्रीचन्द्र विवाह करेंगे। विवेक यह जीव का जीवत्व है। मान यह.बड़ा धन है / विवेक रूपी रत्न तो श्रीचन्द्र के हृदय का P.P. Ac. Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust