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________________ 901 साथ जिनेश्वर देव के मन्दिर में पाये / इतने में चन्द्रकला की दाहिनी प्रांख फड़कने लगी। उसो समय लोगों ने 'श्रीचन्द्र' के समाचार राजा से आकर कहे / दीपचन्द्र राजा वरदत्त श्रेष्ठी के घर पाये / श्रीचन्द्र का देदीप्यमान रुप लावण्य पौर कान्ति प्रादि देख कर राजा बहुत आश्चर्य चकित हुए / श्रेर्छ। द्वारा स्थापित सिंहासन पर दीपचन्द्र राजा विराजमान हुए / श्रीचन्द्र के नमस्कार करते ही राजा दीपचन्द्र ने उसे अपनी गोद में ठिा कर दोहते के समान हर्ष का अनुभव किया। वरदत्त श्रेष्ठी ने श्रीचन्द्र का सव वृतान्त राजा से निवेदन किया। इतने में वीणारव ने श्री 'श्रीचन्द्र' को देख कर कहा, "हे राजन् ! जिन 'श्रीचन्द्र' का अभी मैंने रास गाया था वे ये ही गुणसागर हैं। राधावेघ को करने वाले, तिलक जरी के पति, याचकों की आशा पूर्ण करने वाले, कल्पवृक्ष के समान श्रीचन्द्र जय को प्राप्त हों। सर्व राजाओं के गर्व को हरने वाले अद्वितीय वीर को जय हो।" इतने में तो प्रदीपवती राणी प्रादि सब राज परिवार वहां आ पहुँचा। सब लोग श्रीचन्द्र के दर्शन कर प्रति प्रसन्न हुए। परदत्त श्रेष्ठी ने श्री 'श्रीचन्द्र' को कहा कि "हे गुण सागर ! पद्मिनी के साथ तुम्हारा पाणिग्रहण करना सर्वथा योग्य है / 'दूध और शक्कर' के समान आपका पद्मिनी से संयोग अद्भूत होगा। इसलिए हे गुणशील ! आप सब की आशा को पूर्ण करो।" श्रीचन्द्र ने कहा कि, "हे पूज्य ! आपका कहना ठीक है परन्तु यह कार्य मैं अभी नहीं कर P.P. Ac. Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust
SR No.036499
Book TitleVardhaman Tap Mahima Yane Shrichand Kevali Charitram Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSiddharshi Gani
PublisherVishva Shanti Prakashan
Publication Year
Total Pages265
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size136 MB
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