________________ * 649 - मानन्द पूर्वक चन्द्रकला श्रीचन्द्र के मुख झपी चन्द्र को निरखती हुई, नत्क्षण उसके गले में वरमाला पहना कर और पानी दृष्टि श्री चन्द्र पर स्थापित कर लज्जा से माता के पीछे पाकर खड़ी हो गई / सर्वत्र प्रति मानन्द से विवाह उत्सव मनाया गया। कुछ विचार कर श्रीचन्द्र बहाना निकाल कर नीचे गये / गुणचन्द्र ने रग्नी से कहा कि रथारुढ़ होकर श्रीचन्द्र अभी कुशस्थल को प्रस्थान की सोच रहे हैं। . यह सुनकर तुरन्त ही वामांग. चतुरा आदि सखियां श्रीचन्द्र को रथ से वापिस लेकर आयीं / चन्द्रवती राणी ने पुत्री से कहा कि "कुछ, प्रश्न पूछो जिससे विद्याभ्यास आदि की जानकारी हो।" . चन्द्रकला ने चतुरा सखी द्वारा "पान का बीड़ा क्या है ?" यह पुछवाया / श्रीचन्द्र ने उत्तर में कहा कि "सत्य वचन रुपी पान का बीड़ा है। सम्यकत्व रुपी सुपारी है, स्वाध्याय रूपी कपूर है, शुभ तत्व रुपी मसाला है और वह शिवसुख का कारण भूत है।" फिर स्नान के गुणों को पूछा, उत्तर में श्रीचन्द्र ने कहा, "स्नान मन को प्रसन्न करने वाला है, दुःस्वप्न का नाश करने वाला, सौभाग्य का गृह, मल को दूर करने वाला, मस्तक को सुखकारी, काम अग्नि को जागृत करने वाला, स्त्रिीनों के काम के अस्त्र रुप श्रम को हरने वाला है।" पान का बीड़ा देकर श्रीचन्द्र ने पूछा कि "हे चतुश! पान P.P. Ac. Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust