________________ * 631 सर्वया योग्य हो यह मैं जानती हैं। अतः हमारे सामने 'मैं वणिक हूँ' इम प्रका कयों बोलते हो ? यदि तुम वगिक हो तो भी यह तुम्हारे धर का कार्य करेगी, ऐसा जानकर हम आपको इस समर्पित कर' प्रदीपवती ने श्रीचन्द्र से कहा कि, नैमित्तिक ने पहले कहा था कि, "इस पद्मिनी का दस्त स्पर्श करने वाला बहुत राज कन्याओं से विवाह करेगा और राज्य को प्राप्त करेगा। इसमें सशय नहीं है / प्रापका नाम. कुल नगर आदि नहीं जानते हुए केवल आपके दर्शन मात्र से जिसकी बुद्धि पवित्र हुई है उसने आपको मन से वर लिया है। ... इसमें पूर्व भव का स्नेह निमित्त मात्र है। ऐसा आप समझें / आमु. . बहानी इस कन्या को छोड़ना उचित नहीं। श्री जिनेश्वर देव की नित्य पूजा करने वाली और सिद्धान्त में कहे हुए तत्त्वों की ज्ञाता इस पद्मिनी काहृदय सम्गक्त्व से पवित्र है / वह रात दिन परमेष्ठी महामन्त्र का ध्यान धरती है। ऐसी सुशीला सती वास्तव में जिसे मन से वर चुकी है, उमे इन्द्र भी अन्यथा करने में समर्थ नहीं हैं / अतः इसे स्वीकार कर पाप सब को प्रसन्न करें।"... ..:.:: .' श्री श्रीचन्द्र' पद्मिनी के प्रति स्नेह के कारण, महाराणी .. के प्राग्रह भरे शब्दों का उत्तर देने में असमर्थ हो गये / प्रदीपवती रानी ने इसे कुमार की सम्मति मान कर अति हर्ष से चन्द्रकला को बुला कर कहा "हे पद्मिनी ! इष्ट वर श्री 'श्रीचन्द्र' के गले में वरमाला पहनामो ... ........::: ::: : P.P. Ac. Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust