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________________ * 88310 रानी ने कहा कि, 'तेजस्वी और रूपवान् 'श्रीचन्द्र' पद्मिनी के लिए योग्य तो है परन्तु वह कोई श्रेष्ठी पुत्र है। उसके कुल की वह जानकारी न होने से उसे कन्या कैसे दे सकते हैं ? फिर भी मैं दीपचन्द राजा को इस बात की जानकारी देती हूँ।" चंद्रावती ने सर्व हकीकत दीपचन्द राजा से कही। दीपचन्द राजा ने हंस कर कहा, 'हे बुद्धिशालिनी ! यह तुम क्या कह रही हो / यह कोई बालक के धूल का घर तो नहीं है। पद्मिनी कन्या वणिक के साथ किस तरह व्याही जा सकती है ? इसमें अपनी क्या इज्जत रहेगी शुभगांग राजा के समक्ष यह बात किस प्रकार कही जावे ? वैसे तो चन्द्रकला भी दक्ष है / पहले तो वह सूर्यवती के पुत्र के साथ विवाह के लिए उत्साह वाली थी, परन्तु उसका वह मनोरथ तो सब हृदय में ही रह गये / मेरे विचार में तो चन्द्रकला स्वयंवर द्वारा जिस राजा को पसन्द करे उसके साथ उसका विवाह कर दिया जाय / " - उधर चन्द्रकला ने चैत्य के समीप खडी अपनी सखी को कहा 'कि, 'हे सखी! तुम शीघ्र जाओ और आर्य पुत्र कहां है, इसकी जानकारी करो।" मुझ आदेशानुसार सखी ने दोनों मार्गो द्वारा किल्ले के द्वार तक अच्छी तरह देखा परन्तु उसे कहीं भी "श्रीचन्द्र", नजर नहीं आये / तब वह वापिस आकर कहने लगी कि, "सर्वत्र तलाश करने पर भी श्री 'श्रीचन्द्र' कहीं भी दृष्टिगोचर नहीं हुए।" वियोग से दुःखी चन्द्रकला ने दीघं निश्वास लेते हुए कहा कि, P.P. Ac. Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust
SR No.036499
Book TitleVardhaman Tap Mahima Yane Shrichand Kevali Charitram Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSiddharshi Gani
PublisherVishva Shanti Prakashan
Publication Year
Total Pages265
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size136 MB
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