________________ विनंति स्वीकार कर दोनो राजाओं की सवारी नगर की ओर बढ़ी / आगे जाते हुए पद्म सरोवर की पाल पर पहुंचे। वहां से नगरी की सुन्दर रचना दृष्टिगोचर हो रही थी। विविध प्रकार के सुन्दर तोरणों से सज्जी हुई गली वाजारों की श्रेणियों को देखते हुए उन्होंने नगर में प्रवेश किया / उस समय राज मार्ग में एक सात खण्ड के महल में सुन्दर झरोखों की श्रेणी के अग्र स्थान पर एक दिव्य कन्या सखियों सहित राजा प्रतापसिंह को देखने के लिए खड़ी थी। प्रतापसिंह की उस कन्या रत्न पर दृष्टि पड़ते ही प्रताप का मनरूपी भ्रमर उसके मुखरूपी कमल पर आसक्त हो गया। क्षण वार में जैसे कि कोई योगी लय में स्थिर हो गया हो वैसी राजा प्रतापसिंह की दशा को देख कर मन जानने वाले कलाकार ने कहा कि "जिस कन्या रत्न को देख कर आप स्थिर हुए हैं, वह आप श्री के पुण्य के प्रताप से आप को प्राप्त होगी।" यह सुन कर राजा प्रतापसिंह को आश्चर्य एवं हर्ष हुआ।) प्रतापसिंह ने पूछा कि 'हे भद्र ! यह किस का महल है ? और यह मनोहर कन्या किसकी है ?" कलाकार ने कहा कि “आप के भक्त / राजा दीपचन्द की पटरानी प्रतीपवती का यह महल है और यह सूर्यवती कुमारी उसीकी पुत्री है।" राजा दीपचन्द को बहुत दिनों से सूर्यवती के लिए योग्य वर की चिन्ता थी। राजा प्रतापसिंह के आगमन से उसकी यह चिन्ता दुर P.P.AC.Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust