________________ 67 1 हो गयी / जैसे किसी रोगी को उत्तम वैद्य के आगमन से आनंद होता है उसी प्रकार आज राजा दीप वन्द हर्षोल्लसित था / इधर कुमारी सूर्यवती भी पलक झपके विना अनिमेषदृष्टि से प्रतापसिंह के मुख लावण्यरूपी अमृत का पान कर रही थी। सवारी आगे बढ़ी / नगर के मध्य भाग में भव्य जैन मन्दिर को देखकर राजा प्रतापसिंह ने अति हर्ष से उसमें प्रवेशकर के विधि पूर्वक श्री जिनेश्वर भगवान् को वन्दन किया / फिर वे लोग राज सभा में पहुँचे / राजा प्रतापसिंह एक सुन्दर सिंहासन पर विराजमान हुए / उस समय जैसे कि कोई मोर मेघ गर्जन से नाम उठे उसी प्रकार अति हर्षान्वित होकर राजा दीपचन्द ने प्रतापसिंह नरेश के साथ कुमारी सूर्यवती का हस्तमिलाप विशाल महोत्सव पूर्वक कर दिया / यह देख कर स्त्री पुरुष के लक्षण जानने वाला कलाकार कहने लगा कि 'हे पृथिवीपति / सूर्यवती सुलक्षणा होने से दो भाग्यशाली पुत्रों की जनयिता होगी। वे कुल दीपक और जगत विख्यात होंगे। अतः यह पटरानी पद पर स्थापित की जाने योग्य है / " उसकें ये वचन सुन कर राजा प्रतापसिंह ने सूर्यवती को पटरानी पद से विभूषित किया। सब लोग सूर्यवती के अद्भुत सौभाग्य की सराहना करने लगे / उस समय राजा दीपचन्द की भतीजी चन्द्रावती के पति सिंहपुर नरेश शुभगांग के दूत ने वहां उपस्थित होकर राजा दीपचन्द को एक P.P.AC.Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust