________________ 6 5 10 कलाकार बोला कि 'महाराज ! मैं पक्षियों की बोली जान सकता हूँ" दूसरे ने कहा कि "मैं स्वामी के मन की बात जान लेता हूँ।" तीसरा बोला कि "मैं स्त्री पुरुष के लक्षणों का ज्ञाता हूँ।" चौथे ने उत्तर दिया कि "मैं रथ भ्रमण कला में प्रवीण हूँ। हमारे गुरु गुणधर हैं / आप श्री की सेवा करने के लिए हम आये हैं / " राजा प्रतापसिंह ने कलाकारों का सन्मान कर उनकी याचना स्वीकार की। वे प्रसन्नता पूर्वक राजा के पास रहने लगे। कहा भी है कि “आहार, निद्रा, भय और मैथुन में तो मनुष्य और पशु समान हैं परन्तु वस्तुतः ज्ञान ही मनुष्य में विशेष है। ज्ञान रहित मनुष्य पशु तुल्य है / " प्रयाण करते मार्ग में नदी, वाटिका, उद्यान आदि में राजा इच्छानुसार क्रीड़ा करता था / लोग राजा को भेंट अर्पण करते जिन्हें वह स्वीकार कर उन को सम्मानित कर दान देता था / क्रमशः वे दीप शिखा नगरी के पास आये / उस समय एक शुभ पक्षी ने मधुर स्वर से शुभ शुकन किया पक्षियों की बोली जानने वाला कलाकार बोला कि "हे राजन् ! आपको एक सुन्दर स्नेहवाली कन्या का मिलाप होगा / इस में कोई भी सन्देह नहीं।" इस से राजा के मन में हर्ष हुआ। उसी समय दीप शिखा नगरी के राजा दीपचंद ने आकर प्रतापसिंह नरेश को प्रणाम कर विनंति की कि "हे देव ! आप श्री अपने चरण कमलों से हमारी नगरी को पावन करें।" P.P. Ac. Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust