________________ * 86.. 2. उसकी दासी दिखाई नहीं दीं / विलम्ब का कारण भी समझ में नहीं आया। इतने में वाजिन्त्रों के मधुर स्व' को सुन कर हर्षित हो कर . गुणचन्द्र ने कहा कि, "हे . स्वामी ! इस मधुर संगीत को सुनना चा,िये।" ... मित्र के प्राग्रह से श्रीचन्द्र संगीत वाले स्थान पर पाये / इतने में तो श्री 'श्रीचन्द्र' के नाम का श्रीराग में ध्रुपद में गाते हुए संगीत नृत्य / प्रादि देखा और सुना और विचारने लगे कि श्रीचन्द्र तो बहुत से हैं यह : पुत्र 'श्रीचन्द्र' जय को प्राप्त हो। - यह सुनकर श्रीचन्द्र ने कहा कि, 'हे मित्र ! यह किसका घर : पर वरदत्त श्रेष्ठी को देख कर श्रीचन्द्र ने कहा कि "यह तो वरदत्त / श्रेष्ठी जो कि पितानी के मित्र हैं उनका घर है.। ये पिता के पास व्यापार के काम से आते हैं / " यदि वे मुझे देख लेंगे तो अवश्य रोकेंगे / इसलिये चलो आगे चलें। " कह दिया / वरदत्त श्रेष्ठी ने सोचा कि 'यह श्रेष्ठी पुत्र कौन होगा? : लक्ष्मीदत्त श्रेष्ठी का पुत्र अचानक कहां खे आ गया है ? वह श्रीचन्द्र तो हजारों सैनिकों अश्वों आदि का स्वामी है / अतः यह कौन होगा ?" . यह जानने के लिये वरदत्त श्रेष्ठी तत्काल पीछे 2 गये / P.P. Ac. Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust