________________ * 1490 नगर के मध्य भाग में जिनेश्रर देवाघि देव के मन्दिर में विधि पूर्वक वन्दन करने की भावना से श्रीचन्द्र ने मित्र सहित वहां प्रवेश कर प्रत्येक प्रभुजी को वन्दन करके भाव पूर्वक स्तुति की बाद में बाहर : रंगमंडप में पाये / वहां सिंह, तोते, हाथी, कमल पुतलियों आदि के / सुन्दर चित्र थे। . . .. .. निरीक्षण करते और मित्र को दिखाते हुए द्वार के पास प्राये तब गुणचन्द्र ने विनति की कि, 'हे स्वामिन् यहां थोड़ी देर विश्राम करें, मित्र की प्रेरणा से श्रीचन्द्र वहां बैठे। उसी समय पद्मिनी ने मन्दिर में प्रवेश किया। . पद्मिनी को देख कर श्रीचन्द्र सोचने लगे कि, "कितना सुन्दर कमल के समान मुख है, कितने सुन्दर नयन हैं, होठ शरीर और प्रकृति मादि कितनी सुन्दर हैं।" ___पद्मिनी का अद्भुत रुप देख कर फिर हृदय में सोचने लगे कि, मैंने अनेकों स्त्रियां देखी परन्तु इस पद्मिनी जैसी रुपवती नहीं देखी / श्रीचन्द्र को पद्मिनी को स्नेह युक्त दृष्टि से देखते हुए देख कर गुणचन्द्र को अति हर्ष हुआ / वह मन में प्रार्थना करने लगा कि इन दोनों का मनोरथ पूर्ण हो / . . अपने मित्र गुण चन्द्र को श्रीचन्द्र ने कहा कि 'इस संसार में मन को जीतना बड़ा ही कठिन है / दृष्टि के समक्ष जिनेश्वर देव के होने पर भी मूर्ख मैंने विलास की पटरानी के कटाक्ष, छाती, मुख पारि में ध्यान किया। P.P. Ac. Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust