________________ 'माप्ति पुण्य से कदाचित ही होती है। प्राप गुरु श्री के दर्शन से मैं अपना अहोभाग्य मानता हूं। मैं अपने आप को पुण्यशाली समझता हूँ। सच वास्तव में आप श्री ने मुझ पर बहुत उपकार किया है / मैं मापको बार 2 नमस्कार करता हूँ।" ___गुरु की इस प्रकार स्तुति करके और प्रात्मा की अनुमोदना करके 'श्रीचन्द्र' गुरु के गम्भीर उपदेश को विचारने लगे और परमेष्ठी महामन्त्र का नित्य जाप करने का नियम लेकर, मित्र सहित पूर्व की भांति कौतुक देखते 2 एक महा अटघी में पहुंचे। मध्याह्न के समय अत्यन्त गर्मी से तृषातुर होने के कारण मित्र ने रथ से उतर कर चारों दिशाओं में जल की खोज की। परन्तु कहीं भी जल दिखाई नहीं दिया / "अब क्या करेंगे? भावि क्या होगा" इस तरह दोनों चिन्ता में पड़ गये। स्वामी के मुख को मुरझाया हुमा देख कर गुणचन्द्र ने सारथी से कहा कि 'हे मित्र ! इस ऊंचे वृक्ष के शिखर पर चढ़ कर देखो कि कहीं जल नजर आ रहा है ?" सारथी 'ने वृक्ष पर चढ़ कर देखा कि दक्षिण दिशा में बगुले सारस आदि पक्षी "उड़ रहे हैं, इससे वहां सरोवर होगा ऐसा अनुमान मगा कर नीचें उतर कर रथ को उस दिशा में ले जाने के लिये मनुमति मांगी / तत्क्षण रथ पर मारुढ़ हो कर दोनों मित्र उस तरफ गये वहां एक छोटा सरोवर आया। उसके किनारे पान वन था। मित्र ने सरोवर से पानी लाकर 'श्रीचन्द्र' को दिया : उसका पान करके श्रीचन्द्र 'सरोवर देखने पचे। मीचन्द्र मित्र के साथ सरोवर की पाल पर बैठे P.P. Ac. Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust