________________ * 76 . श्री सिद्ध भगवंत, स्वर्ण के समान कान्ति वाले श्री प्राचार्य प्रियंगु जैसी कान्ति वाले श्री उपाध्याय. अंजन मरिण के समान देदीप्यमान साधु भगवंत इस प्रकार पच परमेष्ठी पदों का विधि पूर्वक व्यान करना चाहिये / इन पांचों को नमस्कार करने से सर्व तो मुखी मंगल होता है / स्वर्ग, मयं और पाताल तीनों लोकों में यह मन्त्र शाश्वत माना जाता है। पांच ऐरवत क्षेत्र, पांच भरत क्षेत्र, पांच महाविदेह क्षेत्र में भूत, भविष्य और वर्तमान काल के सव जिनेश्वर देवों को इस मन्त्र से नमस्कार होता है / महा विदेह क्षेत्र के 160 विजयों में भी जहां अनादि काल से श्री जिन धर्म है और जहां शाश्वत धर्मकाल है; इस महा मन्त्र का ही स्मरण होता है / " . . . . "श्री नमस्कार मन्त्र का स्मरण करने वाला अद्भुत फल को प्राप्त करता है। मृत्यु के समय इसका शुद्ध मन से जो ध्यान करता है वह अवश्य ही सद्गति को प्राप्त होता है जो आपत्ति में नमस्कार मंत्र का ध्यान करता है उसकी सैकड़ों आपत्तियां नष्ट हो जाती हैं / जिस प्रकार गारुड़ी मन्त्र से सर्प द्वारा काटे हुए व्यक्ति का विष उतर जाता है, उसी प्रकार श्री नमस्कार महामन्त्र सर्व पाप रूपी विष को नाश करने वाला है। वास्तव में यह महामन्त्र कामकुम्भ चिन्तामणि रत्न और P.P:AC.Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust