________________ * 74 होगी।" ऐसा कह कर वह युगल उड़कर कहीं से दो बिजोरे ले पाया / सणवार डाल पर विश्राम करके बिजोरे 'श्रीचन्द्र' और गुणचन्द्र के पास रख कर वे उड गये / बुद्धिमान गुणचन्द्र ने दोनों फलों को ग्रहण किया / जब निद्रा से श्री श्रीचन्द्र' जानित हुए तब गुणचन्द्र ने उन फलों को सम्मुख रख कर तोती तोते की बात कह सुनायी। वे फल मित्र के हाथ में देकर राजपुत्र ने रथ में आरुढ़ हो कर आगे प्रयाण किया / विशाल सुन्दर सरोवर के किनारे प्रभात में प्रातः विधि करके मित्र द्वारा दिये गये बड़े बिजोरे को काट कर 'श्रीचन्द्र' ने तथा छोटे को गुणचन्द्र ने खा लिया। फिर दोनों तृप्त होकर नजदीक के रम्य "बन में चले गये। . इधर उधर भ्रमण करते हुए उन्हें दया मूर्ति शान्तदात पौर इन्द्रियों का दमन करने वाले और क्रियाशील श्री सुव्रत मुनि के दर्शन हुए। श्री 'श्रीचन्द्र' ने मन में विचार किया कि, 'मुनि के दर्शन होवा जो अपना बड़ा पुण्योदय है। साधु तीर्थ हैं। साधु समागम तुरन्त 'ही आत्मा को पवित्र करता हैं / ' दोनों वन्दन करके समीप जाकर मैठे गये। भद्र प्रकृति के देख कर मुनि श्री ने 'धर्मलाभ' शुभाशीर्वाद दिया और धर्म देशना प्रारम्भ की "हे भद्र! मनुष्य जन्म दुर्लभ है, उसमें पानक धर्म दुर्लभ है / उसमें दीर्घायुष्य, आरोग्यता, धर्म की P.P. Ac. Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust