________________ . ** .73. ॐ लिए चले गये हैं। इसलिए मैं अकेला ही आपकी सेवा में उपस्थित हुया हूँ।" श्रेष्ठी ने सर्व बातों का विस्तार से वर्णन किया / प्रतापसिंह गजा ने कहा कि, श्री 'श्रीनन्द्र' बहुत ही पुण्यशाली है / लोकोत्तर चारित्र वाला है। जब वह वापिस आये तब उसे मेरे पास लेकर पाना। श्री 'श्रीचन्द्र' को मैं अपने पुत्र से भी बड़ा बनाऊंगा। इसमें कोई भी संदेह नहीं है " .. राजा को लक्ष्मीदत्त ने भेंट अर्पण की, भेंट स्वीकार कर राजा न. लक्ष्मीदत्त और श्री 'श्रीचन्द्र' के लिए रत्न, वस्त्र आदि भेंट दिये / श्रेष्ठी राजा को प्रणाम कर श्री श्री चन्द्र' के बहुत से गुणों को याद करते 2, जगह 2 दान देते हुए अपने घर पहुंचा। सूर्यवती का पुत्र भ्रमण करते 2 महावन में मध्य रात्रि में वृक्ष के नीचे, सारथी सहित रथ रख कर मित्र द्वारा बिछाए वस्त्र पर सुख से निद्राधीन हो गया। पास में गुणचन्द्र जानित अवस्था में थे। उस वृक्ष पर एक शुक शुकी का जोड़ा रहता था / ..... श्री 'श्रीचन्द्र' के मस्तक पर तेज प्रकाश देख कर शुकी ने शुक से कहा कि, "हे नाथ ! यह राजपुत्र बहुा पुण्य शाली है / हम इन्हें दो बिजोरे अतिथ्य सत्कार के रुप में दें। बड़ा बिजोरा जो खाएगा वह राजा होगा तथा जो छोटा बिजोरा खाएगा वह मन्त्री होगा। हम इनका इस प्रकार से आतिथ्य करेंगे तो हमें महान फल की प्राप्ति P.P. Ac. Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust