________________ * 72 10 गीत गान और वाजिन्त्रों के नाद से सारा वातावरण गूज उठा। इन सर्व लीलानों को देखते हुये मोतियों की श्रेष्ट माला के समान पौर चन्द्र की क्रान्ति के तुल्य निर्मल 'श्रीचन्द्र' कुशस्थल के किल्ले के बाहर श्रीपुर के अपने नये महल में पहुंच गया। पूर्व को भांति मित्र सहित श्री श्रीचन्द्र' रात्रि के प्रारम्भ में रण पर. आरुढ़ होकर पश्चिम दिशा में क्रीड़ा के लिए चला गया / प्रातःकाल प्रतापसिंह राजा के प्रादेश से मंत्री हाती आदि सहित आमन्त्रण देने के लिए श्रेडी के घर माया / श्रेष्ठी ने बड़ी प्रसन्नता पूर्वक मन्त्री का स्वागत किया। .. अति हर्ष से मन्त्री ने कहा कि, 'राजा प्रतापसिंह ने प्रादेश दिया है कि, लक्ष्मीदरा श्रेष्ठी और श्री 'श्रीचन्द्र' को पट्टहस्ती पर मारोहण कराके राज्य चिन्हों से युक्त उत्सव पूर्वक राज्य सभा में उपस्थित करो।" .:: : प्रसन्नचित्त से श्रेष्ठी ने पुत्र को बुलाने के लिये सेवक को भेजा। सेवक ने आकर निवेदन किया कि श्री श्रीचन्द्र' क्रीड़ा के लिए बाहर पधारे हैं / " इससे लक्ष्मीदत्त श्रेष्ठी राजा की प्राज्ञानुसार मन्त्री के पाथ अकेले ही भेंट लेकर राजसभा में गये / प्रतापसिंह ने 'श्रीचन्द्र' का वृतान्त पूछा / लक्ष्मीदत्त ने कहा कि, 'हे महाराज ! अश्वों के गुण और राधावेघ भादि का वृतांत P.P. Ac. Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust