________________ * 71 110 देग से 4 पहर में (12 घन्टों में) 100 पोजन (800 मील) का सफर कर सकते हैं / " . . यह सुन कर आनन्दित माता पिता ने कहा कि "हे पंडित शिगेमणी ! यह अद्भूत् राधावेध तुमने कहां से सीखा था ? राजपुत्री जो हमारी वह है, उसे क्यों नहीं लाये हो ?" तब गुणचन्द्र ने स्वयंवर की वरमाला का सारा वृतांत कह सुनाया। हृदय में राग उत्पन्न हुअा। फिर भी श्री 'श्रीचन्द्र' कहने लगे कि 'आप पूज्यों का आदेश नहीं लिया था जिससे इस प्रकार ही हम वापिस आ गये / वह राजकन्या कुछ ही दिनों में यहां आयेगी अथवा आमन्त्रण के लिए मन्त्री आयेगा।" हर्ष युक्त माता पिता ने 'श्रीचन्द्र' की प्रशंसा करते हुए कहा वि, 'धन्य है इसकी गंभीरता ! धन्य पूज्यों की भक्ति ! धन्य अद्भुत निस्पृहता ! धन्य दो लाख में पंचभद्र अश्वों को खरीदने की इसकी निपुणता ! इस प्रकार के मित्र का कैसा सुन्दर योग मिली / सत्य बात होने पर भी अपनी प्रशंसा नहीं करता | अहो ! राजकन्या के पारिणग्रहण का भी इसे उत्साह नहीं है / " लक्ष्मीदत्त सेठ ने श्रेष्ठ महोत्सव शुरु किया / सगे सम्बन्धियों ने मक्षत वस्त्र, वर्तन आदि की भेंट अर्पण कर लक्ष्मीदत्त सेठ के घर फो = भर डाला। सेठ ने महादान देकर सब को आनंदित किया। नंदावर्त, - स्वस्तिकों तथा केले के मनोहर तोरणों से, घर शोभायमान हो गया / ITUAL P.P. Ac. Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust