________________ * 70 1 वर्णन किया। प्रतापसिंह हृदय में आश्चर्य चकित हो कर कहने लगे कि, "मेरे नगर का श्रेष्ठी पुत्र भी रुप, क्रान्ति, गुण और कला में सब से अधिक रहा / पुण्य के प्रभाव से जयश्री भी श्री 'श्रीचन्द्र' ने प्राप्त की / भीचन्द्र ने महान यश को प्राप्त किया है। श्रेष्ठ राधावेध जैसी दुष्कर कला को सिद्ध कर के उसने सर्व देशों में अपने यश के साथ मेरी भी कीति और नाम को फैलाया है। ऐसे गुणी श्री 'श्रीचन्द्र' ने किस गुरु के पास और कब अभ्याय किया था ?" इस प्रकार उसके पुरुषार्थ की प्रतापसिंह ने बारम्बार प्रशंसा की / 'मतिराज मन्त्री ने पूछा कि 'हे देव ! श्रीचन्द्र कब तिलकपुर गया और कब माया ? क्योंकि मैं तो उसे शस्थल में रोज देखता हैं।" - यह सुनकर प्रतापसिंह ने हृदय में अनि विस्मृित हो कर मन्त्री को प्रामन्त्रण दे कर 'श्रीचन्द्र' और लक्ष्मीदत्त सेठ को लाने के लिये तुरन्त भेजा। दूसरी तरफ लोगों द्वारा राधावेध का वृतान्त जानवर लक्ष्मीदरा -श्रेष्ठी ने श्रीचन्द्र को गोद में बिठा कर पूछा कि, 'बारह पहर में (36 घन्टों में) तिलकपुर में तुम किस प्रकार गये और वापिस लौटे ? वह सुनने लायक पाश्चर्य को कहो।" लक्ष्मीवती भी उस चमत्कारिक वृतांत को सुनने की इच्छा मे अति हर्ष पूर्वक सामने भाकर बैठ गयो / सत्य सुधा जैसी मधुर वाणी है भी 'श्रीचन्द्र' ने कहा कि, "हे तात ! माप श्री की कृपा और पूर्व पुण्य से सुवेग रप अपवों से युक्त अद्भुत है। उस रथ द्वारा अपूर्व P.P. Ac. Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust