________________ * 66 10 मन्त्रणा कर रहा था कि, अपने सेवक के सेवक से हम लज्जित हुए हैं। परन्तु उसके साथ राजकुमारी का पाणिग्रहण तो नहीं हुआ / इससे अपना भाग्य स्फुरायमान दिखाई देता है, कारण कि जब कन्या कुशस्थल प्रायेगी तब, अपने सामने श्री 'श्रीचन्द्र' कन्या से कैसे विवाह करेगा। इसलिए कन्या को जयकुमार के साथ न भेजें।" तब राजा ने धीर मंत्री को आमन्त्रण देकर श्री 'श्रीचन्द्र' को लाने के लिए कुशम्थल भेज दिया। तत्पश्चात् तिलक राजा ने सर्व राजाओं और राजकुमारों का हाथी, अश्व, आभूषण आदि से सम्मान किया और वे अपने 2 नगर की ओर विदा हुए। श्री 'श्रीचन्द्र' जल्दी से कुशस्थल पहुँचे। पुत्र के वियोग से सेठ लक्ष्मीदत्त बाहर ही खड़ा देख रहा था। श्री 'श्रीचन्द्र' को द्वितीया के चन्द्र के समान देख कर वह हर्षित हुआ / श्री 'श्रीचन्द्र' ने तत्क्षण रथ में से उतर कर विनय पूर्वक पिता को प्रणाम किया। पिता ने बड़े प्यार से पूछा कि, 'हे पुत्र / आज देरी कैसे हुई ?" श्रीचन्द्र ने उत्तर दिया कि, 'पिताजी ऐसे ही क्रीड़ा करते हुए देरी हो गयी है / " मित्र ने भी हां भरी, क्यों कि श्रेष्ठ मित्र स्वामी के चित्त का अनुसरण करने वाला ही होता है / यह सुन कर श्रेष्ठी चुप हो गया। कुछ दिन पश्चात् जयकुमार आदि भी कुशस्थल वापिस मा पहुँचे। उन्होंने प्रतापसिंह राजा के समक्ष विस्तार से सारी घटना का P.P. Ac. Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust