________________ * 65 1. से निकाल कर राधा की बायीं प्रांस को बींधेगा वह भाग्यशाली 'राधावेध' करने वाला समझा जायेगा।" इतो में अनेक बाजों की मधुर ध्वनि पूर्वक राजपरिवार सहित राजकुमारी तिलकमंजरी देदीप्यमान वर माला लिये हुए वहां प्रा पहुंची। सब को पानंदकारी वह राजकन्या स्तम्भ के दाहिना पोर खड़ी हो गयी। श्रीश्रेष, हरिषेण, आदि अनेक राजे और राजकुमार स्वयंवर मण्डप में एकत्रित हो गये थे / श्री तिलकराजा के आदेश से भाट नै उन महान् राजाओं के नाम, उनके पिता के नाम, नंश, जाति तथा देश आदि वर्णन करके उन्हें राधावेध के लिए प्रोत्साहित किया। स्तम्भ के पास आकर धनुषबाण का उन राजाओं ने क्रमशः निरीक्षण किया परन्तु उनमें में कोई भी राधावेव की कला को सिद्ध न कर सका। विपरीत क्रिया करने से वे दूसरों के हास्य पात्र बने / राधा की बायीं आंख को बींधने में अपने तीरों के निष्फल रहने से जयकुमार आदि के मुख लज्जा से म्लान हो गये। केवल नरवर्मा राजा ने एक चक्र को बीघा परन्तु उसका भी तीर टूट जाने से वह लज्जित होकर लौट गया / वामाङ्ग राजा, वरचन्द्र राजा, शुभगांग राजा तथा दीपचन्द्र राजा का दक्षकुमार तो मन में राधावेघ को दुष्कर समझ कर अपने स्थान से ही नहीं उठे / यह देख कर तिलकराजा, तिलकमंजरी और राज परिवार बड़ा उदासीन P.P. Ac. Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust