________________ 66 हो गया / तब भाट ने फिर ऊंचे स्वर से कहा "हे भद्र रुषों ! क्या कोई राघावेध को सिद्ध करने में समर्थ धनुर्विद्या में प्रवीण पुण्यशाली है ?" तब गुणचन्द्र ने श्री 'श्रीचन्द्र' को कहा, "देव ! राधावेध के * लिए यह शुभ अवसर है। आप राधावेध जानते हैं अतः उसे सिद्ध करने की कृपा करो।" मन्त्री की प्रार्थना पर ‘कलानिधि और तेजस्वी श्री 'श्रीचन्द्र' स्तंभ के पास गये और क्रमशः देव, गुरु, भूमि और धनुष को नमस्कार करके धनुष को तीन बार टंकारा, फिर शास्त्रोक्त विधि से अच्छी तरह निरीक्षण करके उस पुण्यात्मा ने तीर छोड़ कर राधावेध सिद्ध कर दाला। चारों ओर जय जयकार की ध्वनि गूज उठी। राजकन्या तिलकमंजरी ने अति हर्ष पूर्वक श्री 'श्रीचन्द्र' के गले में वरमाला पहना दी। सभी लोग उसके भाग्य, रूप, विद्या, बल, बुद्धि तथा कला कौशल की प्रशंसा करने लगे। राजा ने पूछा कि, "ये कौन है ? किस का पुत्र है ?" वहां बड़ा कोलाहल मच गया था। उसी समय श्री 'श्रीचन्द्र' मित्र का हाथ पकड़ कर रथ के पास पहुँचे। गुणचन्द्र ने कहा कि, 'हे कुलरत्न ! कुछ समय ठहर कर इन की मनोकामना को पूर्ण करो और राजकन्या से पाणिग्रहण कर अपने माता-पिता को आनन्दित करो।" P.P.AC.Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust