________________ सब वहाँ ही जा रहे हैं / " इतने में ही लक्ष्मीदत्त श्रेष्ठी में गुणचन्द्र को बुला कर कहा कि, "तुम कौतुक प्रिय और नई 2 वस्तुओं को देखने की उत्कंठा रखने वाले अपने मित्र 'श्रीचन्द्र' को पूछ लो। वह राधावेध को जानता है / गुणचन्द्र ने कह सुनाया तब सत्वशाली और धीर वीर श्री 'श्रीचन्द्र' मौन रहा। उसने कुछ भी उत्तर नहीं दिया / ' सोहलवें दिन को शाम को पिता को पूछे बिना अकस्मात् श्री 'श्रीचन्द्र' ने मित्र सहित; रथ पर पारुढ होकर, सारथी को तिलकपुर चलने की आज्ञा दी। 'विशाल पर्नत, सरोवर और नगर आदि को पार करता हुआ प्रातःकाल सूर्य का आगमन होता है / रथं का त्याग कर श्री 'श्रीचन्द्र' अपने मित्र के साथ स्वयंवर मंडपं में पहुँचा। वहाँ चारों तरफ बड़ा कोलाहल हो रहा था। मंच पर राजा और राजकुमार बड़े ठाठ बाठ * से विराजमान थे। शास्त्र युक्ति से स्थापित स्थम्भ पर 8 च क उलटे सीधे घूम रहे थे। उनके ऊपर मीण की राधा की पुतली थी। स्तम्भ के पास भूमि पर तेल की कढ़ाई थी। उसमें राधा का प्रतिबिम्ब पड़ता था / स्तम्भ के आगे धनुष बाण रखा हुआ था। श्रीचन्द्र मित्र से कहने बगा कि "हे मित्र ! जो व्यक्ति ऊंची मुष्ठी से बाण को आठ चक्रों में P.P. Ac. Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust