________________ ** दूसरा खराड .एक बार श्री 'श्रीचन्द्र'. महल के अद्भुत झरोखे में अपने मित्र गुणचन्द्र सहित झूला झूल रहे थे, कि अचानक बाजों के * मधुर नाद से दिशाए गूज उठीं। अनेक रथ, अश्व, हाथी, सैनिक सहित जयकुमार, आदि राजपुत्रों को जाते हुए देख कर 'श्रीचन्द्र' ने पूछा कि, "ये आडम्बर पूर्वक कहां जा रहे हैं ?" तब सर्व वृतांतःकी मालूम करके गुणचन्द्र ने कहा कि, "हे स्वामिन् ! पश्चिम दिशा में तिलकपुर एक सुन्दर नगरी है। वहां पर तिलक राजा और रतिप्रिया रानी के तिलक मंजरी नामक एक कन्या है। 64 कलाओं से युक्त वह कन्या विश्वश्री के तिलक तुल्य है। जब वह योवन अवस्था को प्राप्त हुई तो एक बार पिता से तिलकमंजरी ने कहा कि "राधावेध करने वाले पुरुष के अतिरिक्त दूसरे किसी भी 'व्यक्ति के साथ मेरा. पाणिग्रहण नहीं होगा / " तिलक राजा ने शास्त्रानुसार 'राधावेध' की सर्व सामग्री गुरु की देख रेख में तैयार करवा कर निमन्त्रण भेज कर राजाओं और राजकुमारों को स्वयंवर में पधारने की विनंति की है। इस स्वयंवर में अभी 17 दिन बाकी हैं वह नगर यहां से 80 योजन (640 मील) दूर है / जयकुमार आदि P.P.AC.Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust