________________ नामक एक दिव्य रथ को तैयार करवाया। - वह रथ जगत के लोगों को मोहित करने वाल. / पंच भद्र अश्वों और सुवेगरथ का सारंथी उसने धनंजय को परीक्षा करके नियुक्त किया। धनजय राजा के सारथी के कुल में जन्मा था / वह स्वामी के चित्त को अनुसरण करने वाला; स्नेहीं; गंभीर हृदय वाला; भक्तिवान, और चतुर सारथी था / एक शुभ दिन पिता की आज्ञा ग्रहण कर श्री 'श्रीचन्द्र' ने पंचभद्र अंश्वों को पुचकार कर उनके सर्व अङ्गों की मालिश करायी फिर परीक्षा के लिए मित्र सहित रथ पर आरुढ़ होकर, एक दिशा में रथ को चलाने की सारथी को आज्ञा दी। ..... .. 'पंचभद्र' अश्वों ने इतने वेग से रास्ते को पार किया कि जिससे रथ में बैठे हुए उन्हें वृक्ष पर्वत आदि सर्व घूमते हुए नजर आने लगे / आधे पहर में (60 मिनिट) में तो वे 15 योजन (120 मील.) दूर पहुंच गये और कुछ देर वहां विश्राम करने के पश्चात् वापिस अपने घर लौट आये। इस प्रकार श्री 'श्रीचन्द्र' इच्छानुसार भिन्न 2 दिशाओं में मित्र के साथ रथारूढ़ होकर नगर, वन, पर्वत आदि का निरीक्षण कर रहते थे / एकदा सेठ लक्ष्मीदत्त ने पूछा कि "आज इतनी देर कहां लग मयी ?" श्री 'श्रीचन्द्र' ने कहा कि, 'पिताजी ! नगर के बाहर कोई P.P. Ac. Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust