________________ * 56 गये थे / , श्री 'श्रीचन्द्र' परीक्षा करके वायुवेग और महावेग 'पंचभद्र' जाति के अति शीघ्रगामी अश्वों की जोड़ी दो लाख रुपये में खरीद कर अपने घर आये / - --- . . . . . . ... - पुण्य का अद्भुत प्रभाव है / "विश्व में प्रत्येक के शत्रु मित्र होते ही हैं / " किसी ने लक्ष्मीदत्त सेठ से कहा कि, 'हे श्रेष्ठी! तुम्हारे चतुर पुत्र ने दुबले पतले अश्व दो लाख रुपये में खरीदे हैं / जबकि जयकुमार आदि ने उनसे आधे मूल्य में कई हृष्ट पुष्ठ अश्वों को खरीदा है। दोनों में कितना अन्तर है ?" लक्ष्मीदत्त ने कहा, 'उसमें तेरे कहने की कोई आवश्यकता नहीं है, श्री 'श्रीचन्द्र' के आगमन से पहले मेरे पास कितनी लक्ष्मी थी और अब कितनी है ? मेरे पास. लाख से कोड़ की लक्ष्मी की जो वृद्धि हुई है, वह सब श्री 'श्रीचन्द्र' के पुण्य के प्रभाव से आयी है / वह लक्ष्मी पटने वाली नहीं है / दर्भ और कुएं का पानी कितना भी निकालें फिर भी क्या वह घटता है ?" - इतने में श्री 'श्रीचन्द्र' ने प्राकर कहा कि, "पिताजी ! मैंने दो लाख में ये अश्वों की जोड़ी खरीदी है / " लक्ष्मीदत्त ने कहा कि, "तुमने शुभ ही किया ! तू आनन्द को प्राप्त हो।" स्नेहपूर्वक उसने पुत्र - को गोद में बिठाया, जैसे मुकुट के मध्य में रत्न को बैठाते हैं। फिर पिता के आदेश से श्री 'श्रीचन्द्र' ने गारुडी रत्न जड़वा कर सुवेन P.P. Ac. Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust