________________ कर रहे थे / " लक्ष्मीदत्त बोले कि, "वत्स ! तुम इच्छानुसार कोड़ा, करो, परन्तु समय पर घर शीघ्र आ जाया करो / क्योंकि तुम्हारे बिना, मुझे भोजन करने की इच्छा ही नहीं होता।" यह सुनकर श्री. 'श्रीचन्द' कहने लगा कि “यह तो मेरा अहोभाग्य है कि आप पूज्यों का मेरे प्रति इतना स्नेह है।" एक बार क्रीड़ा करते हुए वे त्रिकुट पर्वत पर पहुंचे। वहां पद्मासन में भैरव योगी को देख कर श्री 'श्रीचन्द्र' ने नमस्कार किया / लक्षण और गुणों से युक्त उसे देख कर योगी ने हर्षित होकर कहा कि "कुमार ! तुम छोटे होने पर भी रत्नों के आभूषणों से सुसज्जित और स्वर्ण रथ में आरूढ़ होकर दुष्ट शेर आदि हिंसक पशुओं से भयानक इस महा अटवी में अकेले कैसे आये हो ?" श्रीचन्द्र कहने लगा कि "क्रीड़ा के लिए तथा आश्चर्य को देखते हुए नगर से यहां आ पहुँचा हूँ। प्राप के दर्शनों के प्रताप से मुझे किसी प्रकार का भय नहीं है।" "श्रीचन्द्र" को साहसिक जानकर योगी ने कहा कि, 'यदि तुम - --- की साधना कर लूगा / " श्री 'श्रीचन्द्र' ने स्वीकार कर लिया। रात्रि को योगी आहुती देने लगा। श्री 'श्रीचन्द्र' वहां निर्भयता पूर्वक अकेला * खड़ा रहा। उसकी निर्भयता को देख कर सिद्ध योगी मधुर वाणी से कहने लगा कि, भविष्य में कभी किसी . योगी का तुमने विश्वास ,न * करना / मैंने तो तुम्हारी परीक्षा की है / . तुम्हारे पुरुषार्थ से मैं : प्रसन्न हूँ / सर्व क्षुद्र जन्तुओं को अन्धा करने वाली यह जड़ी बूटी Re v RANPERIME P.P. Ac. Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust