________________ 36. 57.10 : स्तुति : करते थे। "चन्द्र तो कलंक वाला है, परन्तु श्री 'श्रीचन्द्र' : निष्कलंक है / तथापि मुख रूपी चन्द्र के चक्षुओं में कालिमा है।" - "जब चन्द्र अस्त हो जाता है तब. चन्द्र-विकासी कमल कुम्हला जाता है * परन्तु श्री 'श्रीचन्द्र' तो नित्य उदयवाले होने से लक्ष्मी भी कमल का . त्याग कर, श्री 'श्रीचन्द्र' के नाम में, तेज में तथा कर कमल में रही - - ..."जिस प्रकार रोहणगिरि रत्नों से सुन्दर दिखाई देती है उसी ' प्रकार श्री 'श्रीचन्द्र' गुणों से शोभित है।" "जैसे देवों में इन्द्र शोभायुक्त * हैं उसी प्रकार विद्वानों में श्री 'श्रीचन्द्र' शोभायमान हैं।" श्री "श्रीचन्द्र" * मनुष्य के हृदय रूपी नयनों को हर्षामृत से विकसित करने वाले हैं / " - - - - - - . . "जैसे मेरुगिरि के मध्यस्थल में गुणरत्नमय श्री जिनेश्वर / देवों के बिम्ब होने से, स्वर्णगिरि के गौरव का वर्णन नहीं किया जा * सकता .वैसे ही, अनुपम गुणों से युक्त श्री 'श्रीचन्द्र' अवर्णनीय हैं / " : इस प्रकार श्री 'श्रीचन्द्र' की सर्वत्र स्तुति हो रही थी / महान् पुण्य के __ योग से वे इच्छानुसार . लक्ष्मी का दानादि शुभ कामों में उपयोग : . करते थे / -- एक दिन श्री 'श्रीचन्द्र' अपने मित्र गुणचन्द्र के साथ क्रीड़ा के लिए उद्यान में गये वहां सरोवर के किनारे अश्वों का पड़ाव देखा। प्रश्व ऐसे सुन्दर थे जैसे कि वे मानों सूर्य के रथ से ही तो न जुड़े हुए P.P.AC. Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust