________________ * 56 * हो रहा था / गुणधर गुरु ने 'घाव को तुरन्तं ठीक करने वाली औषधि की दिव्य जड़ें श्री 'श्रीचन्द्र' को देकर अपने नगर की ओर प्रस्थानकिया / ___ कुश स्थल में 8 क्रोडाधिपति श्रेष्ठी 1- धनप्रिय, 2. धनदेव, 3- धनसार 4- धतदत्त 5. धनेश्वर 6- धनगोप 7- धनमित्र और 8- धनचन्द्र रहते थे / अनुक्रम से उनकी पत्नियां 1- कमलसेनां 2- कमलावली 3- कमलश्री 4- कमला 5- कनकावती 6- कुसमश्री 7- कनकदेवी 8- कोडिमदेवी थीं / उनके क्रमशः 1- धनवती 2. धनाई 3- धारणी 4- धारु 5- लक्ष्मी 6- लीलावती 7- लच्छी 8- लीलाई, रुप लावण्य, चातुर्य आदि से युक्त लक्ष्मीदेवी के क्रीडा के स्थानभूत - अद्भुत पुत्रियां थीं। ___ जब वे यौवनवय को प्राप्त हुई तो चन्द्र के समान सौम्य और सुन्दर श्री 'श्रीचन्द्र' को देख कर उसके साथ उन 8 कन्याओं का पाणिग्रहण करवाने की इच्छा पूर्वक उनके पिताओं ने लक्ष्मीदत्त श्रेष्ठी से निवेदन किया। उन्हें योग्य जानकर, महोत्सव पूर्वक श्रेष्ठी ने , श्री 'श्रीचन्द' के साथ उनका हस्त मिलाप करवाया। अब श्री 'श्रीचन्द' . आठों स्त्रियों सहित अत्यधिक शोभायमान दिखने लगे / 8 स्त्रियों के हृदय और मुख रुपी दर्पण में श्री 'श्रीचन्द' का प्रतिबिम्ब पड़ने से 16 कलाओं से जैसे चन्द्र शोभा देता है उसी प्रकार श्री 'श्रीचन्द्र'सुशोभित हो रहे थे। कवीश्वर नये 2 काव्यों की रचना कर श्री 'श्रीचन्द्र' की P.P. Ac. Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust