________________ 55 . __ श्रेष्ठी ने कहा कि “गुरुदेव | आपश्री अपने शिष्य के संतोष के लिए थोड़े दिन और ठहरने की कृपा करें।" गुरुदेव ने स्वीकार कर लिया / महात्मा लोग दाक्षिणता से क्या नहीं करते ? गुरु की सौम्य दृष्टि से श्री 'श्रीचन्द्र' को अति आनन्द हुआ / श्रीचन्द्र काः मुरझाया हुआ हृदय रुपी सरोवर गुरु रुपी मुख चन्द्र से अति उल्लसित हो उठा। हर्ष रुपी नीर छोटे उर में नहीं समा सका। उधर प्रतापसिंह राजा समुद्र किनारे 8 वर्ष रुक कर बलपूर्वक रत्नपुर को जीत वहां अपनी आज्ञा फैला कर कुशस्थल में वापिस लौटे / प्रजा जनों ने नगरी को बहुत सजाया और बड़ी धूमधाम से विजयी राजा को लेने के लिए गये / उनमें सेठ लक्ष्मीदत्ता भी श्री 'श्रीचन्द' सहित थे। राजा के प्रागे अपूर्व भेंट अर्पण कर, पिता पुत्र ने बड़े प्रेम . पूर्वक नमस्कार किया। लक्ष्मीदत्त सेठ के साथ सर्व गुणों में श्रेष्ठ सुन्दर 'श्रीचन्द' को देखकर प्रतापसिंह राजा ने पूछा कि, 'यह कुमार कौन है ?" श्रेष्ठी ने कहा कि, 'महाराज यह मेरा पुत्र है !' श्री 'श्रीचन्द' को देख कर आन्तरिक स्नेह और हर्ष के वश राजा ने उसे कोणकोट्टपुर नगर भेंट में दे दिया / राजा ने क्रमशः सारी प्रजा के साथ बातचीत करके उदारता पूर्वक उचित दान देकर, सब को विदा किया। सर्वत्र आनन्द व्याप्त P.P. Ac. Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust