________________ * 53 1. हर। बांस मोड़ने से कार्य नहीं होता, उसी प्रकार विनय से ही गुणों की प्राप्ति होती है विनय विना गुण आते नहीं हैं / " उपाध्याय के पास पाठशाला में बहुत से विद्यार्थी पढ़ते थे / परन्तु उनमें से श्री 'श्रीचन्द्र' पर सभी का विशेष आकर्षण था। जैसे तारों का समूह होने पर भी आकाश में चन्द्र ही सब को प्राकर्षित करता है / 'श्रीचन्द्र' गुरु की भक्ति ने विद्या प्राप्ति हेतु नहीं परन्तु गुरु के गुणानुराग से की थी / वह गुरु का थोड़ा सा भी विरह सहन नहीं कर सकता था। धीरे 2 श्री 'श्रीचन्द्र' लक्षण शास्त्र, छंद, सर्व अलंकार, ज्योतिष गणित साहित्य आगम आदि में अत्यन्त प्रवीण हो गया / उसने सामुद्रिक शास्त्र, अश्व परीक्षा, प्रश्नोत्तर, नाड़ी चेष्ठा, रेखा चिह्न, लग्न, कालज्ञान, स्वरोदय, कल्प विद्या, रसज्ञान, मलमूत्र परीक्षा, नाटक पिंगल आदि गुरु के पास पढ़ लिये / तथा वह स्वर्ण, रत्न, हीरे को परीक्षा, हस्ति शिक्षा, लेखन सकल शास्त्र विद्या, कला में पारंगत हो गया। गुरु ने श्रेष्ठी को यह सारी सूचना दी। लक्ष्मीदत्त ने कहा कि, "क्षत्रिय के योग्य शस्त्र विद्या भी मेरे पुत्र रत्न को सिखा देवें।" गुरु ने शस्त्र विद्या, राधावेध, धनुष्य विद्या प्रादि में श्री 'श्रीचन्द्र' को प्रवीण कर दिया। गुरु कृपा से भी 'श्रीचन्द्र' . सकल विद्या में पारंगत हो गए / गुरु की सारी विद्याएं श्री 'श्रीचन्द्र' के हृदय रुपी दर्पण में जल में तेलवत् प्रतिविम्बित हो गयीं / P.P. Ac. Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust