________________ 6 52 . की भक्ति से रंजित होकर दूसरे स्थान जाने की इच्छा होने पर भी श्री 'श्रीचन्द्र' के पुण्य प्रभाव से निस्पृह उपाध्यायजी ने उसे पढ़ाना स्वीकार कर लिया। श्रेष्ठी ने उपाध्याय को धन ग्रहण करने का बड़ा आग्रह किया / गुणधर बोले कि "मैं ज्ञान को धन से बेचता नहीं हूँ। जो गुरु विनय से प्रभावित हो कर विद्या देता है, वह पुण्यात्मा है / परन्तु जो विद्यार्थी स्वयं विद्या प्राप्त करता है तथा जो गुरु धन लेकर विद्या देता है वे दोनों लोभी हैं।" इस प्रकार के वचनों को सुनकर लक्ष्मीदत्त ने मन में सोचा कि "मैं इनका अमूल्य आभूषणों से सत्कार करुंगा।" फिर सेठ ने "योग्य स्थान में व्यवस्था करें / " लक्ष्मीदत्त सेठ ने कहा कि, "राजा की आज्ञा से लक्ष्मीपुर की विशाल भूमि व महल मुझे मिले हुए हैं। आप वहां पर पधारें।" लक्ष्मीपुर का महल शास्त्र अभ्यास के लिए उपाध्यायजी को योग्य लगा। शुभ दिन, शुभ चन्द्र के योग, शुभ मुहुर्त में उपाध्याय ' को ॐ से पढ़ाने का शुभारम्भ किया / श्रेष्ठी ने सबकी उचित श्री श्रीचन्द्र उपाध्याय की अतीव भक्ति पूर्वक सेवा करता हुआ कम से सूत्र और अर्थ का अभ्यास करने लगा / विनय से श्री श्रीचन्द्र' में गुणों ' का विकास हुआ / जैसे चिल्ला चढ़ाने से धनुष झुक जाता है, परन्तु P.P. Ac. Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust