________________ 8 51 . पत्नी से गुणचन्द्र नामक पुत्र हुआ / गुणचन्द्र श्री 'श्रीचन्द्र' का समान वयस्क होने से उसका प्रीति भाजन हो गया / क्षीर नीर के समान दोनों की परस्पर मैत्री हो गई। गुणचन्द्र ने विवेक से, विनय से, भक्ति से, तथा अति सेवा से श्री 'श्रीचन्द्र' का मन जीत लिया था। दोनों के मन एक हो गये / श्रद्धा का स्थानभूत गुणचन्द्र सज्जनों में श्रेष्ठ श्री 'श्रीचन्द्र' के मन में बस गया। - - -a एक दिन लक्ष्मीदत्त सेठ विचारने लगा कि, "बाल्यावस्था में वस्तुतः कुमार को पढ़ाना चाहिये / उसे पढ़ाने के लिए कौन योग्य है ?" इतने में देश देशान्तर की यात्रा करते गुणंधर उपाध्याय कुशस्थल पधारे / श्री गुणंधर उपाध्याय सर्व विद्याओं में प्रवीण, वृहस्पति के समान सकल शास्त्रों के जानकार, नीति वृद्ध, पंडित, शान्त, दयावान, और स्पष्ट वाणी वाले, शस्त्र और शास्त्र के मर्म के ज्ञाता थे / -masaram उन पाठकजी को आमन्त्रित करके सेठ ने श्री 'श्रीचन्द्र' के विद्याभ्यासहेतु उनसे विनंति की / गुणंधर उपाध्याय ने पूछा कि, "आपका कुमार कहां है ?" श्रेष्ठी ने कुमार को बुलाया / पिता के आदेश से लावण्य रुपी लक्ष्मी के लतागृह जैसे, श्री 'श्रीचन्द्र' ने आकर, गुरु के चरणों में प्रणाम किया, फिर पिताजी को प्रणाम करके शान्ति से विनय पूर्वक, योग्य स्थान पर बैठ गया। पाठक भी श्री 'श्रीचन्द' को सर्व लक्षणों से युक्त विनय आदि गुणों से सर्व प्रकार से योग्य जानकर, उस P.P. Ac. Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust