________________ 50 8. तोती ने कहा कि, "इन प्रभुजी की साक्षी में जो कुछ बोलागया है, वह अन्यथा नहीं हो सकता / ज्ञानी का वचन भी है / इसलिए मैंने अनशन स्वीकार किया है। मेरा सर्व दुष्कृत मिथ्या हो / " इस प्रकार कह कर मौन हो गई। सूर्यवती ने कहा कि, "हे सखी ! तेरे बिना मेरे दिन कैसे बीतेंगे?" फिर सूर्यवती राणी, सखियों तथा नगर के लोगों ने तोती का अनशन महोत्सव किया / तीसरे दिन तोती वीर मरण को प्राप्त हुई। तोती के देह का चन्दन की चिता में अग्नि संस्कार किया गया / शनै 2 शोक का त्याग कर सूर्यवती नित्य तोती को याद करने लगी। इधर सूर्यवती को आई हुई देख कर श्रीचन्द्र तोती की दृढ़ता की अनुमोदना करता हुआ बाहर निकला / अभिमान बिना सर्व हकीकत लक्ष्मीदत्त से कह सुनायी। सैकड़ों मित्रों से युक्त, अमृत का भंडार श्री 'श्रीचन्द' घर आकर अपनी आत्मा में अतीव आनंद का अनुभव करने लगा "जिस प्रकार आकाश में रहा चन्द्र चकोर को आनन्द दिलाता है उसी प्रकार श्री 'श्रीचन्द्र' सब को आनन्द प्राप्त कराने वाला था। कुशस्थल में एक घीधन मन्त्री था। उसके मतिराज और सुधीरराज दो पुत्र थे / मतिराज मन्त्री बना / सुधीरराज की कमला P.P. Ac. Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust