________________ * 46 ही रही थी कि वहां पुण्य से श्री 'श्रीचन्द' कुमार इन्द्र पर दृष्टि पड़ते ही उसकी अद्भुत रूप को देखकर फिर से जिनेश्वर देव के चरणों में नमन करके, तोती ने उच्च स्वर से विनंति की, कि "जन्मान्तर में जो पति हो तो यह राजकुमार ही मेरा पति बने / श्री जिनेश्वर मेरे देव हैं, निग्रंथ मेरे गुरु हैं और जिनेश्वर देव द्वारा प्रकाशित धर्म मुझे प्राप्त हो / " ऐसा कह कर अनशन स्वीकार कर, हर्ष से श्री जिनेश्वर देव के चरण कमल में ही बैठ गयी। श्री 'श्रीचन्द' ने कहा "कि हे पंडिते ! हा ! हा ! ऐसा नियाणा न कर / यह उचित नहीं है / श्री जिनेश्वर ने पुण्य कर्म नियाणा रहित करने के लिए फरमाया है / हे तोती ! मैंने तत्व की बात कही है इसलिए तू मोहाधीन न हो।" - - तोती ने कहा कि, "मुझे नियारणा न हो / हे कुमार ! कुस्वामी के पास रहने से धर्म की सिद्धि नहीं होती, इस बुद्धि से मैं बोली हूँ अर्थात उससे मुझे धर्म की सिद्धि होवे / " इतने में सूर्यवती आ पहुँची / सैन्द्री ने तोती का अनशन आदि वृतान्त कह सुनाया / सूर्यवती ने कहा कि, 'हे सखी ! साहस न कर ! तेरा शरीर आहार योग्य है ! अनशन दुष्कर है / पहले जिस प्रकार का तप करती थी, वैसा तप करती रहना / " तोती ने मस्तक हिलाया। तब सूर्यवती ने कहा कि, "अट्ठाई का पारणा कर महल में आकर मुझे वार्तालाप से आनन्दित करो। तुम्हारा अयुष्य कितना है। यह नहीं जानते हुए भी तुम ने अनशन कैसे कर लिया ?" . . . P.P.AC.Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust