________________ ताजे पुष्पों के करंडिये में कुमार को गुप्त रख कर लक्ष्मीदत्त ने घर लैजाकर एकान्त में प्रिया लक्ष्मीवती को सौंपा और प्राप्ति का स्वरुप विस्तार से कहा, लक्ष्मीवली ने हर्षित होकर कहा कि "आपने बहुत अच्छा किया, कि सुन्दर पुत्ररत्न को ले आये / ": " "श्री 'श्रीचन्द' के रूप और तेजस्विता से मेरा बहुत समय का मनोरथ पूर्ण हुमा हैं। प्रहो ! आपकी बुद्धि ! अहो ! धैर्य'! अहो ! आपका साहस PR IT IFa " "वास्तव में, पूर्व के पुण्य ही मनोवांछित पूर्ण करते हैं। वह पुण्य सुख का कारण होने पर भी, यह प्राश्चर्य है कि प्राणी उस पुण्य को उपार्जित नहीं करता है।" श्रेष्ठी ने भोजन के बाद बंधुनों भौर स्वजनों से कहा किं, "मेरी पत्नी गुप्त गभं वाली थी, पुण्योदय से प्राज पुत्र रत्न का जन्म पा है।" 17 हषित हुए श्रेष्ठी ने चारों तरफ भूमि पर केसर का छिड़काव "करवा कर पुष्पों को चारों तरफ सजाया, स्वणं. मोती के स्वस्तिक किये "हार पर तेजस्वी तोरण बांधे, सारा चौकः पुष्प मालाओं तथा चन्द्रव से सुशोभित किया / सुहांगनाऐं उच्च स्वर में मंगल गीत गाने लगे तथा याचकों की मिश्र ध्वनि से चारों दिशाएं गूंज उठी। ... स्वर्ण के प्रखण्ड प्रक्षत से पूर्ण हजारों घाल घर प्राने लगे "पाजिन्त्रों का मधुर नाद व स्वरं चारों तरफ गूजने लगे | बंधुनों तर P.P.AC.Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust