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________________ शोक नहीं करना चाहिये तथा भावि को भी नहीं विचारना चाहिये / बुद्धिमान मनुष्य तो केवल वर्तमान का ही ध्यान करते हैं / "श्री 'श्रीचन्द्र' कहां गये हैं ? किब आयेंगे मने को अभिलषित को कहने मात्र से क्या लाभ ? जो भाग्य में लिखा होता है. वही मिलता है. * कभी-२ प्राप्त न होने योग्य भी प्राप्त हो जाता है / FETE ETT स्वजनों के इस प्रकार वचनों को सुनकर, सूर्यवती को पूर्व के स्वप्न और, दोहुद्र आदि याद आने से दुःख उमड़ पाया / . फिर उन श्रावकों के वाक्यों से हृदय में उत्पन्न हुए. दुःख को शान्त किया / जैसे वर्षा के द्वारा दावाग्निः शान्त हो जाती है बाद में स्वजन स्वस्थान पर चले गये। वस्त्र श्री नमस्कार महल का ध्यान धारण करती हुई सूर्यवती को मध्य रात्रि में क्षण वार के लिए निद्रा आ गयी / इतने में एक श्वेत वी ने सूर्यवती से कहा कि, "हे वत्से ! क्या तू जागती है.?", देवी दर्शन से, सभ्रम सूर्यवती ने कहा कि "हे माता ! दुःखी को निद्रा कहां ? मेरे पुण्य प्रताप से आपश्री ने दर्शन दिया। 'नेत्र को आनन्द देने वाली आप कौन हैं ?" 6: देवी ने कहा कि, “हे भद्रे ! मुझे कुल देवी समझ / तू सोह. का त्याग कर, वृथा ही दुःख को धारण न कर। तेरा पुत्र श्री श्रीचन्द्र' विजयी है / पुष्पों के पुज में से मैंने उसे दूसरे सुखद स्थान P.P. Ac. Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust
SR No.036499
Book TitleVardhaman Tap Mahima Yane Shrichand Kevali Charitram Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSiddharshi Gani
PublisherVishva Shanti Prakashan
Publication Year
Total Pages265
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size136 MB
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