________________ *1640 शान्ति वक व्यतीत करने लगी 1 पहले जन्म भूमि में श्री वीतराग देव के फरमाये, हुए उपदेश ज्ञानी-मुनि द्वारा श्रवण, कर,तोती तीव्र तप को करने लगी, और निर्मल सम्यक्त्व को पालने लगी.। ज्ञानी मुनि ने भावि कथन करते हुए कहा कि “तू अगले भव. में, राजपुत्री होगी।" इन वचनों को सुन कर वह उत्साह से विशेष धर्म करने लगी / सूर्यवती के रोकने पर भी हार्दिक भाव से इसने अट्ठाई तप. पूर्ण किया है। उसका प्राज पारणा है। हर्ष से सूर्यवती देवी ने तप के अनुमोदनाथ महोत्सव से चैत्य परिपाटी निकाली हैं। ! TET: तपस्विनी तोती प्रति हर्ष से श्री जिनेश्वर देव की पूजा पूर्वक फल, स्वर्ण, मोती प्रादि भेंट करके भैपना जन्म सफल कर रही है / " 'श्री श्रीचन्द हैर्ष पाकर बोला कि "अहो भाग्य ! अहो शक्ति महो वैराग्य ! 'तियं च योनि में जन्म लेने पर भी यहां शुभ कर्म के उदय से; श्रद्धा, दया भादि पुण्य सामग्री इस को प्राप्त हुई हैं / FET ': 'इस प्रकार प्रशंसा करके, चैत्य के अन्दर जाकर श्री जिनेश्व "देव को नमन करके, श्री "श्रीचन्द' तोती का निरीक्षणं ..करते हुए खड़ हो गया। .. तोती श्री. अरिहंत : भगवान की पूजा कर चोंच .. / अष्टमंगल करके विधि पूर्वक श्री जिनेश्वर देव की स्तुति कर वापस लौ P.P. Ac. Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust