________________ उस देवी ने बधाई दी कि, "हे श्रेष्ठी ! उठ, प्रभात में कल्प वृक्ष तेरे - घर पायेगा / बंधुनों को आमन्त्रित कर यथा शक्ति महोत्सव कर।" लक्ष्मीदत्त ने जाग्रित होकर विचार किया कि, "मैंने उत्तम स्वप्न के दर्शन किये हैं / " श्री नमस्कार महामन्त्र पढ़कर तत्काल उठकर लक्ष्मीवती को शुभ स्वप्न की बधाई दी / प्रभात में सर्व बन्धुओं को आमन्त्रित कर प्रेम से भोजन आदि का आयोजन किया / कुशस्थल में आवश्यकतानुसार फूल न मिलने के कारण श्रेष्ठी भेंट ले कर राजकुल में गया। जयकुमार को नमन करके भेंट अपंण करके पुष्पों की मांग की। जयकुमार की प्राज्ञा लेकर वह. राजा के. गृह उद्यान में गया। पुष्पों के पुज के पास अनेक छोटे २.सिपं होने पर भी निर्भय होकर वह स्वयं तथा उसके नौकर फूल एकत्रित करने लगे / इतने में पुष्पों के पुज में गुप्त . रहे हुए प्रतापसिंह राजा के पुत्र ने दैव योग से पैरं को हिलाया। श्रेष्ठी पुष्पों को हिलते देख कर मन में विचार करने लगा कि, “यहाँ क्या है ?" पुष्पों को हटाते ही एक अद्भुत कुमार के दर्शन हुए ; TES ... श्री 'श्रीचन्द्र' सूर्य के बिम्ब के समान तेजस्वी, चन्द्र के समान सौम्य, कल्पवृक्ष की शोभा तुल्य, रत्न कम्बल. और. आभूषणों से शृङ्गारित तथा श्री 'श्रीचन्द्र' नाम की अंगूठी से सुशोभित था। हर्षित हुए श्रेष्ठी ने एकदम उठा कर विचार किया कि "कुल देवी ने ' स्वप्न में जो कहा था,वह सत्य ही हुमा / बन देवता ने. ही पुत्र रस्न दिया P.P. Ac. Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust